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Tuesday, 4 March 2014

शास्त्रीय भाषा

शास्त्रीय भाषा

केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी मिलने के बाद उड़िया देश की छठी शास्त्रीय भाषा बन गई है। इससे पूर्व संस्कृत, तमिल, कन्नड़, तेलुगू और मलयालम इस सूची में शामिल हो चुकी हैं। भाषाओं को यह दर्जा देने संबंधी परंपरा की नींव आजादी के ठीक बाद पड़ी।

 संविधान सभा में जब संस्कृत वोटों के आधार पर आधिकारिक भाषा नहीं बन सकी, तो अनुच्छेद 351 के तहत उसे विशेष भाषा का दर्जा दिया गया। संविधान सभा ने उसे इसलिए खास माना, क्योंकि वह हिंदी सहित कई भाषाओं की जननी रही है।

हालांकि शास्त्रीय भाषा के अब तक के इतिहास में 20वीं सदी का उत्तरार्ध महत्वपूर्ण मोड़ है, क्योंकि उस दौर में कुछ विद्वानों ने संगम काल की तमिल कविताओं के आधार पर तमिल को भी विशेष दर्जा देने की मांग शुरू की थी।

आखिरकार साहित्य अकादेमी जैसी संस्थाओं की सलाह के मद्देनजर वर्ष 2004 में केंद्र सरकार ने ′प्राचीन भाषा, किसी अन्य भाषायी परंपरा से उत्पत्ति नहीं, प्राचीन साहित्य की समृद्ध परंपरा′ जैसे प्रावधानों के आधार पर शास्त्रीय भाषा देने की आधिकारिक शुरुआत की। वर्ष 2005 में तमिल यह दर्जा हासिल करने वाली दूसरी भाषा बनी।

हालांकि भविष्य में इसके प्रावधानों को लेकर विवाद न हो, इसलिए वर्ष 2006 में राज्यसभा में सरकार ने इसके नए प्रावधानों की घोषणा की। नए प्रावधानों के तहत यह तय किया गया कि भाषा का कम से कम 1500-2000 वर्ष पुराना इतिहास हो,

 साहित्य/ग्रंथों एवं वक्ताओं की प्राचीन परंपरा हो और साहित्यिक परंपरा का उद्भव दूसरी भाषाओं से न हुआ हो। शास्त्रीय भाषा बन जाने के बाद केंद्र उस भाषा पर शोध एवं विकास के लिए अनुदान देता है। इसके अतिरिक्त केंद्रीय विश्वविद्यालयों में इससे संबंधित चेयर की स्थापना भी की जाती है।

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