थिंक टैंक
पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय के थिंक टैंक ऐंड सिविल सोसाइटीज प्रोग्राम (टीटीसीएसपी) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के मात्र छह थिंक टैंक ही शीर्ष 150 वैश्विक थिंक टैंक में जगह बना पाए हैं। गौरतलब है कि दुनिया भर में करीब 4,500 थिंक टैंक हैं।
थिंक टैंकों की संख्या के हिसाब से अमेरिका (1828), चीन (426), ब्रिटेन (287) के बाद भारत (268) का स्थान है। थिंक टैंक उन संस्थानों को कहा जाता है, जो सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, सैन्य, विदेश नीति, तकनीकी एवं संस्कृति जैसे विषयों पर अनुसंधान एवं रणनीति तैयार करते हैं। ज्यादातर थिंक टैंक (नीति निर्माण या अनुसंधान संस्थान) गैर-लाभकारी संगठन होते हैं
लेकिन कुछ संस्थान सरकार या विभिन्न समूहों की वित्तीय सहायता से चलते हैं। मौजूदा अर्थ में ′थिंक टैंक′ शब्द का इस्तेमाल 1950 के दशक में हुआ, लेकिन ऐसे संगठन 19वीं शताब्दी से ही अस्तित्व में हैं। मसलन, लंदन के द इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस ऐंड सिक्योरिटी स्टडीज की स्थापना 1831 में ही हुई थी, ब्रिटेन की फैबियन सोसाइटी 1884 से ही अस्तित्व में है।
वाशिंगटन के मूल थिंक टैंक ब्रूकिंग्स संस्थान की स्थापना 1916 में की गई थी। 1945 के बाद कई लोगों द्वारा विभिन्न मुद्दे एवं नीति एजेंडा को व्यक्त करने के लिए काफी संख्या में थिंक टैंक गठित किए गए। बाद में थिंक टैंक उन संगठनों को भी कहा जाने लगा, जो सैन्य परामर्श देते थे।
1980 के दशक में शीतयुद्ध की समाप्ति, भूमंडलीकरण और अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के उभरने के चलते दुनिया भर में थिंक टैंकों की संख्या में भारी इजाफा हुआ। आज जितने भी थिंक टैंक हैं, उनमें से दो-तिहाई 1970 के बाद बने हैं और आधे से अधिक की स्थापना 1980 के दशक में हुई है।
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