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Monday, 15 September 2014

मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल

मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल

आज ओजोन परत संरक्षण दिवस है। चूंकि 1987 में 16 सितंबर को ही मॉन्ट्रियल संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे, इसलिए हर वर्ष इस दिन यह दिवस मनाया जाता है। 

ओजोन परत की खस्ता हालत की जानकारी 1974 में अमेरिकी रसायनशास्त्री एफ शेरवुड रॉलैंड और मैरिनो मोलिना ने दी। उन्होंने बताया कि क्लोरोफ्लोरो कार्बन (सीएफसी) सूर्य की किरणों से प्रतिक्रिया कर क्लोरीन और क्लोरीन मोनोक्साइड के अणु उत्सर्जित करते हैं, जो ओजोन को नुकसान पहुंचा रहे हैं। 

परिणामस्वरूप 1974 में अमेरिका, नॉर्वे, स्वीडन और कनाडा जैसे देशों ने उन एयरोसोल के निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया, जिनमें सीएफसी का उपयोग होता है। ओजोन को बचाने की इन्हीं कोशिशों के तहत वियना सम्मेलन में मॉन्ट्रियल संधि पारित की गई।

 इस संधि के तहत वर्ष 1994 तक सीएफसी का स्तर 1986 के स्तर के 80 फीसदी तक करने और वर्ष 1999 तक 1986 के स्तर के 50 फीसदी तक करने का लक्ष्य रखा गया। हालांकि यह लक्ष्य अब भी दूर है, लेकिन हाल ही में ओजोन परत में सुधार के संकेत देखे गए हैं 

और माना जा रहा है कि इस सदी के मध्य तक यह पूरी तरह ठीक हो सकती है। वैसे भारत ने पहली अगस्त, 2008 को ही सीएफसी के उत्पादन पर रोक लगा दी है।

Tuesday, 4 March 2014

शास्त्रीय भाषा

शास्त्रीय भाषा

केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी मिलने के बाद उड़िया देश की छठी शास्त्रीय भाषा बन गई है। इससे पूर्व संस्कृत, तमिल, कन्नड़, तेलुगू और मलयालम इस सूची में शामिल हो चुकी हैं। भाषाओं को यह दर्जा देने संबंधी परंपरा की नींव आजादी के ठीक बाद पड़ी।

 संविधान सभा में जब संस्कृत वोटों के आधार पर आधिकारिक भाषा नहीं बन सकी, तो अनुच्छेद 351 के तहत उसे विशेष भाषा का दर्जा दिया गया। संविधान सभा ने उसे इसलिए खास माना, क्योंकि वह हिंदी सहित कई भाषाओं की जननी रही है।

हालांकि शास्त्रीय भाषा के अब तक के इतिहास में 20वीं सदी का उत्तरार्ध महत्वपूर्ण मोड़ है, क्योंकि उस दौर में कुछ विद्वानों ने संगम काल की तमिल कविताओं के आधार पर तमिल को भी विशेष दर्जा देने की मांग शुरू की थी।

आखिरकार साहित्य अकादेमी जैसी संस्थाओं की सलाह के मद्देनजर वर्ष 2004 में केंद्र सरकार ने ′प्राचीन भाषा, किसी अन्य भाषायी परंपरा से उत्पत्ति नहीं, प्राचीन साहित्य की समृद्ध परंपरा′ जैसे प्रावधानों के आधार पर शास्त्रीय भाषा देने की आधिकारिक शुरुआत की। वर्ष 2005 में तमिल यह दर्जा हासिल करने वाली दूसरी भाषा बनी।

हालांकि भविष्य में इसके प्रावधानों को लेकर विवाद न हो, इसलिए वर्ष 2006 में राज्यसभा में सरकार ने इसके नए प्रावधानों की घोषणा की। नए प्रावधानों के तहत यह तय किया गया कि भाषा का कम से कम 1500-2000 वर्ष पुराना इतिहास हो,

 साहित्य/ग्रंथों एवं वक्ताओं की प्राचीन परंपरा हो और साहित्यिक परंपरा का उद्भव दूसरी भाषाओं से न हुआ हो। शास्त्रीय भाषा बन जाने के बाद केंद्र उस भाषा पर शोध एवं विकास के लिए अनुदान देता है। इसके अतिरिक्त केंद्रीय विश्वविद्यालयों में इससे संबंधित चेयर की स्थापना भी की जाती है।

Thursday, 27 February 2014

बियॉन्ड बॉलीवुड

बियॉन्ड बॉलीवुड

वाशिंगटन डीसी स्थित नेशनल म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री इन दिनों सुर्खियों में है, क्योंकि वहां भारतीय मूल के अमेरिकियों के लंबे प्रवास के इतिहास, उनके धार्मिक एवं अध्यात्मिक प्रभाव एवं शिक्षा, विज्ञान एवं खेल के क्षेत्र में उपलब्धियों को रेखांकित करने के लिए ′बियॉन्ड बॉलीवुडः इंडियन अमेरिकन शेप द नेशन′ नामक एक प्रदर्शनी आयोजित की गई है।

यह प्रदर्शनी 16 अगस्त, 2015 तक जारी रहेगी। इस प्रदर्शनी में यह दिखाने की कोशिश की गई है कि अमेरिका को बनाने में प्रवासी भारतीयों का क्या योगदान रहा है। माना जाता है कि पहली बार 1790 में भारतीय प्रवासी अमेरिका गए थे, जिन्होंने अमेरिका की पहली रेल लाइन के निर्माण एवं खेती में योगदान किया था

 और जब एशिया से आने वाले लोगों के प्रवास को वहां हतोत्साहित किया जाने लगा, तो उन्होंने अमेरिकी नागरिकता के लिए संघर्ष भी किया। तबसे लेकर हॉटमेल के निर्माण तक प्रवासी भारतीय अमेरिकियों के योगदान की अनगिनत कहानियों को इस प्रदर्शनी का हिस्सा बनाया गया है।

 शिक्षा, चिकित्सा, मनोरंजन, खेल, फैशन डिजाइनिंग आदि तमाम क्षेत्रों में प्रवासी भारतीयों ने अमेरिका का नाम रोशन किया है। इस प्रदर्शनी में सुपर बाउल जीतने वाले पहले भारतीय अमेरिकी का फुटबॉल हेलमेट, भारतीय अमेरिकी डिजाइनर नईम खान द्वारा तैयार की गई मिशेल ओबामा की ड्रेस, जिमनास्ट मोहिनी भारद्वाज द्वारा एथेंस में जीते गए सिल्वर ओलंपिक मेडल, 1985 में बालू नटराजन द्वारा जीती गई

पहली स्पेलिंग बी ट्राफी, 1957 में पहली बार जीतकर अमेरिकी संसद में पहुंचे सांसद दलीप सिंह सौंद की प्रचार सामग्री के साथ-साथ नामचीन भारतीय अमेरिकियों की पारिवारिक तस्वीरों आदि को प्रदर्शित किया गया है।

वाशिंगटन डीसी स्थित नेशनल म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री इन दिनों सुर्खियों में है, क्योंकि वहां भारतीय मूल के अमेरिकियों के लंबे प्रवास के इतिहास, उनके धार्मिक एवं अध्यात्मिक प्रभाव एवं शिक्षा, विज्ञान एवं खेल के क्षेत्र में उपलब्धियों को रेखांकित करने के लिए ′बियॉन्ड बॉलीवुडः इंडियन अमेरिकन शेप द नेशन′ नामक एक प्रदर्शनी आयोजित की गई है।

यह प्रदर्शनी 16 अगस्त, 2015 तक जारी रहेगी। इस प्रदर्शनी में यह दिखाने की कोशिश की गई है कि अमेरिका को बनाने में प्रवासी भारतीयों का क्या योगदान रहा है। माना जाता है कि पहली बार 1790 में भारतीय प्रवासी अमेरिका गए थे, जिन्होंने अमेरिका की पहली रेल लाइन के निर्माण एवं खेती में योगदान किया था

 और जब एशिया से आने वाले लोगों के प्रवास को वहां हतोत्साहित किया जाने लगा, तो उन्होंने अमेरिकी नागरिकता के लिए संघर्ष भी किया। तबसे लेकर हॉटमेल के निर्माण तक प्रवासी भारतीय अमेरिकियों के योगदान की अनगिनत कहानियों को इस प्रदर्शनी का हिस्सा बनाया गया है।

 शिक्षा, चिकित्सा, मनोरंजन, खेल, फैशन डिजाइनिंग आदि तमाम क्षेत्रों में प्रवासी भारतीयों ने अमेरिका का नाम रोशन किया है। इस प्रदर्शनी में सुपर बाउल जीतने वाले पहले भारतीय अमेरिकी का फुटबॉल हेलमेट, भारतीय अमेरिकी डिजाइनर नईम खान द्वारा तैयार की गई मिशेल ओबामा की ड्रेस, जिमनास्ट मोहिनी भारद्वाज द्वारा एथेंस में जीते गए सिल्वर ओलंपिक मेडल, 1985 में बालू नटराजन द्वारा जीती गई

पहली स्पेलिंग बी ट्राफी, 1957 में पहली बार जीतकर अमेरिकी संसद में पहुंचे सांसद दलीप सिंह सौंद की प्रचार सामग्री के साथ-साथ नामचीन भारतीय अमेरिकियों की पारिवारिक तस्वीरों आदि को प्रदर्शित किया गया है।

Wednesday, 26 February 2014

typing speed slow rahe .. why


रियांग जनजाति

रियांग जनजाति

इन दिनों मिजोरम में बहुसंख्यक मिजो एवं अल्पसंख्यक रियांग (जिसे ब्रु जनजाति भी कहा जाता है) जनजाति के बीच तनाव काफी गहरा गया है और कथित तौर पर रियांग जनजाति के लोग पलायन के लिए मजबूर किए जा रहे हैं। दोनों समुदायों के बीच संघर्ष कोई नई बात नहीं है। पिछले 17 वर्षों से यह संघर्ष सुलगता रहा है। 

वर्ष 1997 एवं 2009 में भी संघर्षपूर्ण स्थिति के चलते रियांग जनजाति के हजारों लोगों को अपना घर-बार छोड़कर भागना पड़ा था। रियांग देश की 75 आदिम जनजातियों में से एक है। कहा जाता है कि यह म्यांमार के शान राज्य के पहाड़ी इलाकों से आकर त्रिपुरा में बसी है। त्रिपुरा के अलावा यह जनजाति मिजोरम, असम, मणिपुर और बांग्लादेश में भी पाई जाती है।

 वे रियांग बोली बोलते हैं, जो तिब्बत-बर्मी भाषा परिवार का अंग है। पूर्वोत्तर की अन्य जनजातियों की तरह रियांग जनजाति के लोगों की शक्ल भी मंगोलों से मिलती-जुलती है। त्रिपुरी के बाद यह त्रिपुरा की दूसरी सबसे बड़ी जनजाति है। रियांग जनजाति मुख्यतः दो बड़े गुटों में विभाजित है-मेस्का और मोलसोई। यह मुख्यतः कृषि पर निर्भर रहने वाली जनजाति है।

पहले ये लोग ज्यादातर झूम खेती करते थे, पर अब वे खेती के आधुनिक तौर-तरीके अपना रहे हैं। पढ़े-लिखे लोगों ने सरकारी नौकरी में भी जगह बनाई है। इस समुदाय के कई लोग नौकरशाही में उच्च पदों पर पहुंचे हैं, और कुछ ने अपना व्यवसाय भी शुरू किया है। 

अपने ही समुदाय में शादी करने वाली यह जनजाति पारंपरिक वेशभूषा धारण करती है और नृत्य इसके जीवन का अभिन्न अंग है। धार्मिक रूप से हिंदू धर्म के वैष्णव संप्रदाय को मानने वाली रियांग जनजाति के प्रमुख को राय कहा जाता है, जो विवाह एवं तलाक की अनुमति देता है और आपसी झगड़े निपटाता है।
खुली खिड़की

क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र

क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र

केरल में पहली बार अंतरराष्ट्रीय लोकोत्सव का आयोजन किया गया है। इसका आयोजन राज्य सरकार ने पूर्वी और दक्षिणी सांस्कृतिक क्षेत्र के सहयोग से किया है। देश के संस्कृति मंत्रालय के अनुसार हमारे देश में सात सांस्कृतिक क्षेत्र हैं

-दक्षिणी सांस्कृतिक क्षेत्र (तंजावुर, तमिलनाडु), दक्षिण मध्य सांस्कृतिक क्षेत्र (नागपुर, महाराष्ट्र), उत्तरी सांस्कृतिक क्षेत्र (पटियाला, पंजाब), उत्तर मध्य सांस्कृतिक क्षेत्र (इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश), पूर्वी सांस्कृतिक क्षेत्र (कोलकाता, पश्चिम बंगाल), पूर्वोत्तर सांस्कृतिक क्षेत्र (दीमापुर, नगालैंड) एवं पश्चिमी सांस्कृतिक क्षेत्र (उदयपुर, राजस्थान)। 

प्रत्येक सांस्कृतिक क्षेत्र का एक क्षेत्रीय मुख्यालय है, जहां क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र की स्थापना की गई है। इन क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्रों की विशेषता है कि राज्य अपने सांस्कृतिक संपर्कों के आधार पर एक से अधिक सांस्कृतिक केंद्रों के सदस्य हो सकते हैं।

 ज्यादातर सांस्कृतिक क्षेत्रों के क्षेत्रीय मुख्यालयों की स्थापना 1985 में हुई और उन्होंने 1986-87 के दौरान काम करना शुरू किया। इन सांस्कृतिक केंद्रों का घोषित उद्देश्य है-भारतीय संस्कृति की जड़ों को मजबूत बनाना और समग्र राष्ट्रीय संस्कृति को विकसित करना, ताकि प्रादेशिक एवं क्षेत्रीय सीमाओं के आरपार सांस्कृतिक भाईचारा बढ़ाया जा सके। 

इसके अलावा ये केंद्र अन्य क्षेत्रों की लोक कलाओं को भी प्रोत्साहित करने के लिए कार्यक्रम आयोजत करते हैं। ऐसे केंद्र विभिन्न लोक व जनजातीय कलाओं और दुर्लभ होती कलाविधाओं के संरक्षण के साथ-साथ अपने शिल्पग्राम के माध्यम से शिल्पियों को हाट सुविधाएं भी उपलब्ध कराते हैं। पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता को देश की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में भी जाना जाता है।

Monday, 24 February 2014

अर्बन हीट आइलैंड

अर्बन हीट आइलैंड

जब से दिल्ली की आबोहवा के बीजिंग से भी खराब होने की चर्चा चली है, तभी से पर्यावरण पर तरह-तरह के अध्ययन निष्कर्ष सामने आ रहे हैं। अभी हाल ही में एक संगठन ने सर्वे के जरिये बताया है कि दिल्ली के कई इलाके शहरी ग्रीष्म द्वीप (अर्बन हीट आइलैंड) बन गए हैं। 

अर्बन हीट आइलैंड (यूएचआई) वैसे महानगरीय इलाके को कहा जाता है, जो मानवीय गतिविधियों के कारण अपने आसपास के ग्रामीण इलाकों की तुलना में अत्यधिक गर्म होता है। इसके बारे में सबसे पहले चर्चा 1810 के दशक में ल्यूक हॉवर्ड ने की थी, हालांकि उन्होंने इसे नाम नहीं दिया था। 

यूएचआई प्रभाव मुख्यतः जमीन की सतह में परिवर्तन यानी बढ़ते शहरीकरण (जिसमें लघु तरंग विकिरण को संचित करने वाली सामग्रियों, जैसे कंकरीट, डामर आदि का उपयोग होता है) के कारण होता है। इसके अलावा ऊर्जा के उपभोग से उत्पन्न ताप में बढ़ोतरी, पेड़-पौधों में कमी, वाहनों की बढ़ती संख्या तथा बढ़ती आबादी का भी इसमें योगदान होता है।

 कभी-कभी ऐसे क्षेत्रों को भी ग्रीष्म द्वीप कहा जाता है, जहां की आबादी भले ही ज्यादा न हो, पर आसपास के इलाकों की तुलना में वहां का तापमान लगातार बढ़ता रहता है। न्यूयॉर्क, टोक्यो, मुंबई, दिल्ली जैसे महानगर शहरी ग्रीष्म द्वीप के उदाहरण हैं।

 यूएचआई की वजह से शहरों में वर्षा बढ़ जाती है। तापमान बढ़ने से फसलों के पकने का समय भी बढ़ जाता है। यूएचआई की वजह से प्रदूषण बढ़ता है, वायु एवं जल की गुणवत्ता घटती है, जिससे पारिस्थितिकी पर दबाव बनता है। मानव स्वास्थ्य पर भी इसका बुरा असर पड़ता है। यूएचआई शहरों में गर्म हवाओं (लू) के परिणाम एवं उसकी अवधि को बढ़ाते हैं, जिससे काफी मौतें होती हैं।

प्राइमरी चुनाव प्रणाली

प्राइमरी चुनाव प्रणाली
 
पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी की पहल पर कांग्रेस ने आगामी लोकसभा चुनाव के लिए प्रायोगिक तौर पर 16 संसदीय क्षेत्रों में उम्मीदवारों के चयन के लिए प्राइमरी चुनाव प्रणाली अपनाने की घोषणा की है। यदि यह प्रयोग सफल रहा, तो भविष्य में भी कांग्रेस उम्मीदवारों के चयन के लिए यह प्रक्रिया अपनाएगी। 

प्राइमरी चुनाव के जरिये कोई पार्टी चुनाव के लिए अपने प्रत्याशी का चयन करती है। इस प्रणाली का व्यापक प्रचलन अमेरिका में प्रगतिशील आंदोलन के दौरान हुआ, जब चयन का अधिकार पार्टी पदाधिकारियों से लेकर पंजीकृत मतदाताओं के हाथों में सौंप दिया गया। 

जहां प्राइमरी चुनाव प्रशासन के बजाय दलों द्वारा आयोजित होते हैं, वहां दो तरह से ये चुनाव होते हैं-क्लोज्ड यानी दलगत और ओपेन यानी गैर दलगत। दलगत चुनावों में केवल पार्टी के सदस्य ही उम्मीदवारों के चयन के लिए वोट डाल सकते हैं, जबकि गैर दलगत प्राइमरी चुनाव में मतदाता उम्मीदवारों का चयन करते हैं। प्राइमरी चुनाव प्रत्यक्ष एवं परोक्ष तरीके से भी हो सकता है। 

प्रत्यक्ष प्राइमरी चुनाव में मतदाता वोट डालकर उम्मीदवार का चयन करते हैं, जबकि परोक्ष प्राइमरी चुनाव में मतदाता अपने प्रतिनिधि का चुनाव करते हैं और चुने हुए प्रतिनिधि उम्मीदवार मनोनीत करते हैं। राष्ट्रपति चुनाव के लिए पहली बार न्यू हैंपशायर ने 1916 में इसे अपनाया। 

हालांकि 1970 के दशक तक अमेरिका के 20 से कम राज्यों में ही इसका प्रयोग होता था, पर मीडिया द्वारा इसे महत्व दिए जाने से अन्य राज्यों ने भी इसमें दिलचस्पी दिखाई। प्रत्याशियों के चयन में पारदर्शिता एवं राजनीतिक स्वच्छता के लिहाज से महत्वपूर्ण यह प्रणाली यूरोपीय देशों, इटली, फ्रांस, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ, चिली, उरुग्वे आदि में भी प्रचलित है।

Friday, 21 February 2014

Microsoft Natural Keyboard Shortcuts

Microsoft Natural Keyboard Shortcuts

1. Windows Logo (Display or hide the Start menu)
2. Windows Logo+BREAK (Display the System Properties dialog box)
3. Windows Logo+D (Display the desktop)


4. Windows Logo+M (Minimize all of the windows)

5. Windows Logo+SHIFT+M (Restorethe minimized windows)
6. Windows Logo+E (Open My Computer)


7. Windows Logo+F (Search for a file or a folder)
8. CTRL+Windows Logo+F (Search for computers)
9. Windows Logo+F1 (Display Windows Help)
10. Windows Logo+ L (Lock the keyboard)


11. Windows Logo+R (Open the Run dialog box)
12. Windows Logo+U (Open Utility Manager)


13. Accessibility Keyboard Shortcuts
14. Right SHIFT for eight seconds (Switch FilterKeys either on or off)
15. Left ALT+left SHIFT+PRINT SCREEN (Switch High Contrast either on or off)


16. Left ALT+left SHIFT+NUM LOCK (Switch the MouseKeys either on or off)
17. SHIFT five times (Switch the StickyKeys either on or off)


18. NUM LOCK for five seconds (Switch the ToggleKeys either on or off)
19. Windows Logo +U (Open Utility Manager)


20. Windows Explorer Keyboard Shortcuts
21. END (Display the bottom of the active window)
22. HOME (Display the top of the active window)
23. NUM LOCK+Asterisk sign (*) (Display all of the subfolders that are under the selected folder)
24. NUM LOCK+Plus sign (+) (Display the contents of the selected folder)

MMC Console keyboard shortcuts

1. SHIFT+F10 (Display the Action shortcut menu for the selected item)
2. F1 key (Open the Help topic, if any, for the selected item)
3. F5 key (Update the content of all console windows)


4. CTRL+F10 (Maximize the active console window)
5. CTRL+F5 (Restore the active console window)
6. ALT+ENTER (Display the Properties dialog box, if any, for theselected item)
7. F2 key (Rename the selected item)
8. CTRL+F4 (Close the active console window. When a console has only one console window, this shortcut closes the console)

Remote Desktop Connection Navigation
1. CTRL+ALT+END (Open the Microsoft Windows NT Security dialog box)
2. ALT+PAGE UP (Switch between programs from left to right)
3. ALT+PAGE DOWN (Switch between programs from right to left)
4. ALT+INSERT (Cycle through the programs in most recently used order)
5. ALT+HOME (Display the Start menu)


6. CTRL+ALT+BREAK (Switch the client computer between a window and a full screen)
7. ALT+DELETE (Display the Windows menu)


8. CTRL+ALT+Minus sign (-) (Place a snapshot of the active window in the client on the Terminal server clipboard and provide the same functionality as pressing PRINT SCREEN on a local computer.)
9. CTRL+ALT+Plus sign (+) (Place asnapshot of the entire client window area on the Terminal 


server clipboardand provide the same functionality aspressing ALT+PRINT SCREEN on a local computer.)

Microsoft Internet Explorer Keyboard Shortcuts
1. CTRL+B (Open the Organize Favorites dialog box)
2. CTRL+E (Open the Search bar)
3. CTRL+F (Start the Find utility)
4. CTRL+H (Open the History bar)
5. CTRL+I (Open the Favorites bar)
6. CTRL+L (Open the Open dialog box)
7. CTRL+N (Start another instance of the browser with the same Web address)
8. CTRL+O (Open the Open dialog box,the same as CTRL+L)
9. CTRL+P (Open the Print dialog box)
10. CTRL+R (Update the current Web page)
11. CTRL+W (Close the current window)

gk science

1. लाफिंग गैस का रासायनिक नाम क्या हैं?— नाइट्रस ऑक्साइड
2. हवा से हल्की गैस का उदाहरण दें?— हाइड्रोजन
3. हवा से भारी गैस का नाम बताएं?— कार्बन डाइऑक्साइड

4. गोबर गैस में मुख्यत: कौन-सी गैस होती है?— मिथेन
5. कुकिंग गैस में कौन-सी गैस होती हैं?— प्रोपेन, ब्यूटेन
6. चमकने वाला और माचिसों में प्रयुक्त होने वाला पदार्थ है-— फास्फॉरस

7. मनुष्य के बाद सबसे समझदार जीव किसे कहा जाता हैं?— डालिफन
8. बाँस ( Bamboo) क्या हैं?— घास
9. फलों को पकाने के लिए किस गैस का प्रयोग किया जाता हैं?— ऐसीटिलीन
10. गलगण्ड (Goitre) नामक रोग किसकी कमी से होता हैं?— आयोडीन

11. ‘जीवाश्मों’ की आयु निर्धारित करने के लिए कौन-सी विधि अपनाई जाती है?— कार्बन डेटिंग विधि
12. लालटेन में मिटटी का तेल बत्ती में किसके कारण चढ़ जाता हैं?— केशिकत्व के कारण
13. गोताखोर किस गैसों के मिश्रण से सा°स लेते हैं?— ऑक्सीजन तथा हीलियम
14. भोपाल गैस दुर्घटना में कौन-सी गैस रिसी थी?— मिथाइल आइसो सायनेट

15. जल का शुह्तम रूप हैं-— वर्षा का जल
16. कौन-सी गैस नोबल गैस कहलाती हैं?— हीलियम
17. शुह् सोना कितने कैरट (Karat) का होता हैं?— 24 कैरट
18. बरगद के पेड़ के तने से नीचे लटकने वाली मोटी जड़ें क्या कहलाती है?— स्तम्भ मूल
19. प्राथमिक रंग ( Primary Colours) होते हैं?— नीला, पीला, हरा
20. वर्षा की बूँदें किसके कारण गोल हो जाती हैं?— पृष्ठ तनाव के कारण

21. बायोडीजल बनाने में किस वनस्पति का उपयोग किया जाता है?— रतनजोत ( जेटरोफा )
22. ‘बर्ड फ्लू’ और ‘स्वाइन फ्लू’ के विषाणु का नाम बताएं?— क्रमश: H5 N1 व H1N1

Thursday, 20 February 2014

पापुआ न्यू गिनी

पापुआ न्यू गिनी

दक्षिणी प्रशांत देश पापुआ न्यू गिनी (पीएनजी) इन दिनों एक दुखद घटना के कारण सुर्खियों में है। पिछले दिनों वहां ऑस्ट्रेलिया द्वारा चलाए जा रहे शरणार्थी शिविर में हिंसा होने के बाद इन शिविरों को बंद करने का दबाव बन रहा है। इन शरणार्थी शिविरों के हालात की संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों एवं मानवधिकार संगठनों ने भी आलोचना की है।

 इन शरणार्थी शिविरों में रहने वाले लोग युद्ध जर्जर देशों-अफगानिस्तान, सूडान, इराक, ईरान, लेबनान, पाकिस्तान, सोमालिया एवं सीरिया से हैं। वैसे पापुआ न्यू गिनी सांस्कृतिक विविधता वाला देश है, जहां आठ सौ से ज्यादा भाषाएं बोली जाती हैं। 63 लाख की आबादी वाले इस देश में कई पारंपरिक समाज बसते हैं।

 यहां की ज्यादातर आबादी ग्रामीण इलाकों में है, मात्र 18 फीसदी आबादी ही शहरों में रहती है। वर्ष 1884 से तीन विदेशी शासकों (आधा उत्तरी हिस्सा जर्मन, आधा दक्षिणी हिस्सा ब्रिटिश एवं बाद में आस्ट्रेलिया) द्वारा प्रशासित इस देश ने 1975 में तब संप्रभुता हासिल की, जब ऑस्ट्रेलिया ने इस पर शासन करना छोड़ दिया। उसी वर्ष यह संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बन गया था।

22 प्रांतों में बंटे इस देश की राजधानी पोर्ट मोरेस्बी है। खनिज एवं प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर इस देश ने इतना विकास किया है कि 2011 में यह तेजी से विकास करने वाली दुनिया की छठी बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई।

 इसके बावजूद यहां की लगभग एक-तिहाई आबादी प्रतिदिन सवा डॉलर से भी कम पर गुजारा करती है। यहां की आबादी का बड़ा हिस्सा पारंपरिक ढंग से जीता है और आजीविका के लिए खेती पर निर्भर है। देश के अंदरूनी हिस्से में वनस्पतियों एवं पशुओं की कई अज्ञात प्रजातियों के भी होने की संभावना जताई जाती है।

Wednesday, 19 February 2014

जानें कीबोर्ड शॉर्ट

जानें कीबोर्ड शॉर्ट

1. F1 - सहायता
2. CTRL+ESC - प्रारंभ मेनू खोलें।
3. ALT+TAB - खुले कार्यक्रमों के बीच स्विच।
4. ALT+F4 - कार्यक्रम से बाहर निकलें।
5. SHIFT+DELETE - आइटम स्थायी रूप से हटाएं।

6. Windows Logo+L - कंप्यूटर लॉगऑफ
7. SHIFT+DELETE - चुनी हुई आइटम तुरंत बिना रीसाइकल बिन में डाले हमेशा के लिए डिलीट करें।
8. ALT+ENTER - चुने हुए ऑब्जेक्ट की प्रॉपर्टीज खोलें।
9. Windows Logo - प्रारंभ मेनू

10. Windows Logo+R - Run कमांड बॉक्स ओपन करें।
11. Windows Logo+M - maximize विंडो minimize करें।
12. ALT+F4 - वर्तमान विंडो को बंद करता है।
13. CTRL+F4 - एक समय में सभी दस्तावेज़ बंद करें।

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Monday, 17 February 2014

तुलसी

तुलसी

तुलसी में गजब की रोगनाशक शक्ति है। विशेषकर सर्दी, खांसी व बुखार में यह अचूक दवा का काम करती है। इसीलिए भारतीय आयुर्वेद के सबसे प्रमुख ग्रंथ चरक संहिता में कहा गया है।

- तुलसी हिचकी, खांसी,जहर का प्रभाव व पसली का दर्द मिटाने वाली है। इससे पित्त की वृद्धि और दूषित वायु खत्म होती है। यह दूर्गंध भी दूर करती है।

- तुलसी कड़वे व तीखे स्वाद वाली दिल के लिए लाभकारी, त्वचा रोगों में फायदेमंद, पाचन शक्ति बढ़ाने वाली और मूत्र से संबंधित बीमारियों को मिटाने वाली है। यह कफ और वात से संबंधित बीमारियों को भी ठीक करती है।

- तुलसी कड़वे व तीखे स्वाद वाली कफ, खांसी, हिचकी, उल्टी, कृमि, दुर्गंध, हर तरह के दर्द, कोढ़ और आंखों की बीमारी में लाभकारी है। तुलसी को भगवान के प्रसाद में रखकर ग्रहण करने की भी परंपरा है, ताकि यह अपने प्राकृतिक स्वरूप में ही शरीर के अंदर पहुंचे और शरीर में किसी तरह की आंतरिक समस्या पैदा हो रही हो तो उसे खत्म कर दे। शरीर में किसी भी तरह के दूषित तत्व के एकत्र हो जाने पर तुलसी सबसे बेहतरीन दवा के रूप में काम करती है। सबसे बड़ा फायदा ये कि इसे खाने से कोई रिएक्शन नहीं होता है।

तुलसी की मुख्य जातियां- तुलसी की मुख्यत: दो प्रजातियां अधिकांश घरों में लगाई जाती हैं। इन्हें रामा और श्यामा कहा जाता है।

- रामा के पत्तों का रंग हल्का होता है। इसलिए इसे गौरी कहा जाता है।

- श्यामा तुलसी के पत्तों का रंग काला होता है। इसमें कफनाशक गुण होते हैं। यही कारण है कि इसे दवा के रूप में अधिक उपयोग में लाया जाता है।

- तुलसी की एक जाति वन तुलसी भी होती है। इसमें जबरदस्त जहरनाशक प्रभाव पाया जाता है, लेकिन इसे घरों में बहुत कम लगाया जाता है। आंखों के रोग, कोढ़ और प्रसव में परेशानी जैसी समस्याओं में यह रामबाण दवा है।

- एक अन्य जाति मरूवक है, जो कम ही पाई जाती है। राजमार्तण्ड ग्रंथ के अनुसार किसी भी तरह का घाव हो जाने पर इसका रस बेहतरीन दवा की तरह काम करता है।

मच्छरों के काटने से होने वाली बीमारी - मच्छरों के काटने से होने वाली बीमारी, जैसे मलेरिया में तुलसी एक कारगर औषधि है। तुलसी और काली मिर्च का काढ़ा बनाकर पीने से मलेरिया जल्दी ठीक हो जाता है। जुकाम के कारण आने वाले बुखार में भी तुलसी के पत्तों के रस का सेवन करना चाहिए। इससे बुखार में आराम मिलता है। शरीर टूट रहा हो या जब लग रहा हो कि बुखार आने वाला है तो पुदीने का रस और तुलसी का रस बराबर मात्रा में मिलाकर थोड़ा गुड़ डालकर सेवन करें, आराम मिलेगा।

- साधारण खांसी में तुलसी के पत्तों और अडूसा के पत्तों को बराबर मात्रा में मिलाकर सेवन करने से बहुत जल्दी लाभ होता है।

- तुलसी व अदरक का रस बराबर मात्रा में मिलाकर लेने से खांसी में बहुत जल्दी आराम मिलता है।

- तुलसी के रस में मुलहटी व थोड़ा-सा शहद मिलाकर लेने से खांसी की परेशानी दूर हो जाती है।

- चार-पांच लौंग भूनकर तुलसी के पत्तों के रस में मिलाकर लेने से खांसी में तुरंत लाभ होता है।

- शिवलिंगी के बीजों को तुलसी और गुड़ के साथ पीसकर नि:संतान महिला को खिलाया जाए तो जल्द ही संतान सुख की प्राप्ति होती है।

- किडनी की पथरी में तुलसी की पत्तियों को उबालकर बनाया गया काढ़ा शहद के साथ नियमित 6 माह सेवन करने से पथरी मूत्र मार्ग से बाहर निकल जाती है।
- फ्लू रोग में तुलसी के पत्तों का काढ़ा, सेंधा नमक मिलाकर पीने से लाभ होता है।

- तुलसी थकान मिटाने वाली एक औषधि है। बहुत थकान होने पर तुलसी की पत्तियों और मंजरी के सेवन से थकान दूर हो जाती है।

- प्रतिदिन 4- 5 बार तुलसी की 6-8 पत्तियों को चबाने से कुछ ही दिनों में माइग्रेन की समस्या में आराम मिलने लगता है।

- तुलसी के रस में थाइमोल तत्व पाया जाता है। इससे त्वचा के रोगों में लाभ होता है।

- तुलसी के पत्तों को त्वचा पर रगड़ दिया जाए तो त्वचा पर किसी भी तरह के संक्रमण में आराम मिलता है।

- तुलसी के पत्तों को तांबे के पानी से भरे बर्तन में डालें। कम से कम एक-सवा घंटे पत्तों को पानी में रखा रहने दें। यह पानी पीने से कई बीमारियां पास नहीं आतीं।

- दिल की बीमारी में यह अमृत है। यह खून में कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करती है। दिल की बीमारी से ग्रस्त लोगों को तुलसी के रस का सेवन नियमित रूप से करना चाहिए

विशेषाधिकार समिति

विशेषाधिकार समिति

लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने 13 फरवरी को लोकसभा के भीतर एक सांसद द्वारा तेलंगाना के विरोध में मिर्च स्प्रे का छिड़काव करने के मामले की जांच संसद की विशेषाधिकार समिति को सौंप दी है। 

सदन की कार्यवाही एवं आचरण की नियमावली की नियम संख्या 227 के अंतर्गत यह मामला विशेषाधिकार समिति को सौंपा गया है। संसद के दोनों सदनों में विशेषाधिकार समिति का गठन अध्यक्ष या सभापति द्वारा किया जाता है। इस समिति में विभिन्न दलों को सदस्य संख्या के आधार पर प्रतिनिधित्व दिया जाता है। 

लोकसभा की विशेषाधिकार समिति में 15 सदस्य होते हैं। जब भी संसद के दोनों सदनों या किसी भी सांसद के विशेषाधिकार के उल्लंघन या अवमानना का मामला सामने आता है, तो ऐसे मामलों की जांच विशेषाधिकार समिति को सौंपी जाती है। इसी समिति की रिपोर्ट के आधार पर विशेषाधिकार का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को दंडित किया जाता है। 

विशेषाधिकार समिति के पास अन्य शक्तियों के अलावा दोषी व्यक्ति को दंडित करने की, जिसमें जेल भेजने से लेकर सदन से निष्काषित करना भी शामिल है, सिफारिश करने का अधिकार होता है। संसद के अलावा राज्यों की विधानसभाओं में भी विशेषाधिकार समिति होती है। 

इससे पहले भी संसद में विशेषाधिकार उल्लंघन के मामले सामने आए हैं। 1967 में दो लोगों को दर्शक दीर्घा से पर्चे फेंकने और 1983 में नारे लगाने एवं चप्पल फेंकने के मामले में एक व्यक्ति को पकड़ा गया था और इन दोनों मामलों में दोषी व्यक्तियों को सामान्य कैद की सजा दी गई थी। 2008 में एक उर्दू साप्ताहिक के संपादक को राज्यसभा के सभापति को ′कायर′ बताने पर विशेषाधिकार उल्लंघन का दोषी पाया गया था।

धन आवंटन की शुरुआत

धन आवंटन की शुरुआत गरीबों से करके अर्थव्यवस्था मजबूत की जा सकती है, क्योंकि गरीब अपनी आमदनी का अधिकतर हिस्सा खर्च करता है।
- हा जून चांग

Sunday, 16 February 2014

पूर्वोत्तर परिषद

पूर्वोत्तर परिषद

पूर्वोत्तर के छात्रों को नस्लीय भेदभाव से राहत एवं सुरक्षा दिलाने के लिए पूर्वोत्तर परिषद (नॉर्थ ईस्टर्न काउंसिल) ने दिल्ली और बंगलूरू में उनके लिए अलग हॉस्टल बनाने का फैसला किया है। 

पूर्वोत्तर परिषद का गठन केंद्र सरकार ने वर्ष 1971 में देश के पूर्वोत्तर क्षेत्र के सात राज्यों-अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड और त्रिपुरा के सामाजिक एवं आर्थिक विकास को गति देने के लिए किया था।

 वर्ष 2002 में एनईसी ऐक्ट में संशोधन करके इसमें सिक्किम को भी शामिल किया गया। इसका मुख्यालय शिलांग में है और यह केंद्र सरकार के पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय के अधीन काम करता है। राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत अध्यक्ष एवं तीन सदस्यों के अलावा संबंधित राज्यों के मुख्यमंत्री एवं राज्यपाल इसके प्रतिनिधि होते हैं।

 1972 से काम करने वाली इस परिषद ने पूर्वोत्तर राज्यों में संगठित एवं सुनियोजित प्रयास से तीव्र विकास के एक नए अध्याय की शुरुआत की। यह पूर्वोत्तर राज्यों के साझा हितों (संचार, परिवहन, बाढ़ नियंत्रण, ऊर्जा आदि) से संबंधित मामलों में विचार कर केंद्र सरकार को सलाह देती है। चूंकि ये राज्य अन्य प्रांतों की तुलना में पिछड़े हैं, 

इसलिए परिषद उनके आर्थिक एवं सामाजिक विकास से संबंधित योजनाओं का ख्याल रखती है और अंतरराज्यीय विवादों को सुलझाती है। करीब चार दशकों से ज्यादा के कार्यकाल में इस परिषद की झोली में कई उपलब्धियां हैं। मसलन, विद्युतीकरण एवं शिक्षा के क्षेत्र में इसने काम किया है

 और 250 मेगावाट के विद्युत उत्पादन परियोजना के जरिये पश्चिम बंगाल एवं ओडिशा पर विद्युत निर्भरता घटाई है। मुख्यतः यह केंद्र के वित्तीय सहयोग पर निर्भर है, लेकिन संबंधित राज्यों से भी इसे आर्थिक सहायता मिलती है।

Thursday, 13 February 2014

Sant ravidash jayenti


प्रायरिटी फॉरेन कंट्री

प्रायरिटी फॉरेन कंट्री


अमेरिकी चैंबर ऑफ कॉमर्स ने ओबामा प्रशासन से कहा है कि वह भारत को प्रायरिटी फॉरेन कंट्री (पीएफसी) की श्रेणी में डाल दे। अमेरिकी चैंबर ऑफ कॉमर्स का कहना है कि उसने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि पिछले दो वर्षों से भारत ने बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) के संरक्षण में खास दिलचस्पी नहीं दिखाई है

 और इस लिहाज से वहां माहौल बहुत खराब हुआ है। प्रायरिटी फॉरेन कंट्री की श्रेणी अमेरिकी व्यापार कानून की वह श्रेणी है, जिसमें उन देशों को रखा जाता है, जो आईपीआर के ′पर्याप्त एवं प्रभावी′ संरक्षण से इन्कार करते हैं

और बौद्धिक संपदा अधिकार संरक्षण पर निर्भर अमेरिकी लोगों को ′निष्पक्ष एवं न्यायसंगत′ बाजार में पहुंचने से रोकते हैं। अमेरिकी ट्रेड रिप्रजेंटेटिव (यूएसटीआर) हर वर्ष दूसरे देशों के बौद्धिक संपदा कानून एवं नीतियों का सर्वे करती है और उसके आधार पर स्पेशल 301 रिपोर्ट तैयार करती है।

इस रिपोर्ट में प्रायरिटी फॉरेन कंट्री, प्रायरिटी वॉच लिस्ट, वॉच लिस्ट, सेक्शन 306 मॉनिटरिंग एवं स्टेटस पेंडिंग की सूची तैयार की जाती है। स्पेशल 301 रिपोर्ट पहली बार 1989 में प्रकाशित की गई थी। उल्लेखनीय है

 कि अभी अमेरिका की स्पेशल 301 रिपोर्ट में भारत प्रायरिटी वॉच लिस्ट देशों की सूची में है। इस सूची में शामिल देशों की बौद्धिक संपदा अधिकार संरक्षण से संबंधित कदमों एवं नीतियों की निगरानी अमेरिका करता है।

अगर भारत को पीएफसी की सूची में शामिल किया जाता है, तो भारतीय कंपनियां पेटेंट संरक्षण के तहत आने वाली दवाओं का जेनरिक तौर पर उत्पादन नहीं कर पाएंगी और भारतीयों को अमेरिकी कंपनियों की महंगी दवाइयों पर निर्भर रहना पड़ेगा। इसके अलावा भारत पर व्यापार संबंधी प्रतिबंध भी लगाया जा सकता है।

Wednesday, 12 February 2014

magalyan in air


सरोजिनी नायडू (१३ फरवरी १८७९ - २ मार्च १९४९

सरोजिनी नायडू (१३ फरवरी १८७९ - २ मार्च १९४९) का जन्म भारत के हैदराबाद नगर में हुआ था ।

 इनके पिता अघोरनाथ चट्टोपाध्याय एक नामी विद्वान तथा माँ कवयित्री थीं और बांग्ला में लिखती थीं । बचपन से ही कुशाग्र-बुद्धि होने के कारण उन्होंने १२ वर्ष की अल्पायु में ही १२हवीं की परीक्षा अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण की और १३ वर्ष की आयु में लेडी आफ दी लेक नामक कविता रची।

 वे १८९५ में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैंड गईं और पढ़ाई के साथ-साथ कविताएँ भी लिखती रहीं। गोल्डन थ्रैशोल्ड उनका पहला कविता संग्रह था। उनके दूसरे तथा तीसरे कविता संग्रह बर्ड आफ टाइम तथा ब्रोकन विंग ने उन्हें एक सुप्रसिद्ध कवयित्री बना दिया।[1]
१८९८ में सरोजिनी नायडू, डा. गोविंदराजुलू नायडू की जीवन-संगिनी बनीं। १९१४ में इंग्लैंड में वे पहली बार गाँधीजी से मिलीं और उनके विचारों से प्रभावित होकर देश के लिए समर्पित हो गयीं। एक कुशल सेनापति की भाँति उन्होंने अपनी प्रतिभा का परिचय हर क्षेत्र (सत्याग्रह हो या संगठन की बात) में दिया। उन्होंने अनेक राष्ट्रीय आंदोलनों का नेतृत्व किया और जेल भी गयीं। 

संकटों से न घबराते हुए वे एक धीर वीरांगना की भाँति गाँव-गाँव घूमकर ये देश-प्रेम का अलख जगाती रहीं और देशवासियों को उनके कर्तव्य की याद दिलाती रहीं। उनके वक्तव्य जनता के हृदय को झकझोर देते थे और देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए प्रेरित कर देते थे। वे बहुभाषाविद थी और क्षेत्रानुसार अपना भाषण अंग्रेजीहिंदीबंगला या गुजराती में देती थीं। लंदनकी सभा में अंग्रेजी में बोलकर इन्होंने वहाँ उपस्थित सभी श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया था।[2]

अपनी लोकप्रियता और प्रतिभा के कारण १९२५ में कानपुर में हुए कांग्रेस अधिवेशन की वे अध्यक्षा बनीं और १९३२ में भारत की प्रतिनिधि बनकर दक्षिण अफ्रीका भी गईं। भारत की स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद वे उत्तरप्रदेश की पहली राज्यपाल बनीं। श्रीमती एनी बेसेन्ट की प्रिय मित्र और गाँधीजी की इस प्रिय शिष्या ने अपना सारा जीवन देश के लिए अर्पण कर दिया। २ मार्च१९४९ को उनका देहांत हुआ। १३ फरवरी १९६४ को भारत सरकार ने उनकी जयंती के अवसर पर उनके सम्मान में १५ नए पैसे का एक डाकटिकट भी जारी किया।

राज्यपाल

स्वाधीनता की प्राप्ति के बाद, देश को उस लक्ष्य तक पहुँचाने वाले नेताओं के सामने अब दूसरा ही कार्य था। आज तक उन्होंने संघर्ष किया था। किन्तु अब राष्ट्र निर्माण का उत्तरदायित्व उनके कंधों पर आ गया। कुछ नेताओं को सरकारी तंत्र और प्रशासन में नौकरी दे दी गई थी। उनमें सरोजिनी नायडू भी एक थीं।

उन्हें उत्तर प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त कर दिया गया। वह विस्तार और जनसंख्या की दृष्टि से देश का सबसे बड़ा प्रांत था। उस पद को स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा, 'मैं अपने को 'क़ैद कर दिये गये जंगल के पक्षी' की तरह अनुभव कर रही हूँ।' लेकिन वह प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की इच्छा को टाल न सकीं जिनके प्रति उनके मन में गहन प्रेम व स्नेह था। इसलिए वह लखनऊ में जाकर बस गईं और वहाँ सौजन्य और गौरवपूर्ण व्यवहार के द्वारा अपने राजनीतिक कर्तव्यों को निभाया।

सिक्किम

सिक्किम

स्वास्‍थ्य, स्वच्छता और पर्यावरण के मामले में वैश्विक कसौटी पर काफी पिछड़े माने जाने वाले भारत जैसे देश के लिए यह काफी राहत की बात हो सकती है कि सिक्किम स्वच्छता सुविधाओं का शत-प्रतिशत प्रसार करके, ऐसा करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है।

 देश के आठ पूर्वोत्तर राज्यों में शामिल हिमालय के पूर्वी भाग में बसा यह राज्य ग्रामीण और शहरी इलाकों के घरों, स्कूलों और आंगनवाड़ी केंद्रों में सफाई के मामले में देश के 28 राज्यों और 7 केंद्र शासित प्रदेशों की सूची में अव्वल बना गया है। केंद्रीय पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय की नई रिपोर्ट इसी तथ्य की तसदीक करती है। इस राज्य के बारे में कुछ उल्लेखनीय बातें और भी हैं।

 610,577 बाशिंदों (2011 की जनगणना के मुताबिक) के साथ सिक्किम देश की सबसे कम जनसंख्या वाला और क्षेत्रफल में दूसरा सबसे छोटा राज्य है। गंगटोक इसकी राजधानी और सबसे बड़ा शहर भी है। हिमालय स्थित नाथू ला दर्रे को लेकर भी सिक्किम काफी चर्चित रहा है। दरअसल यह दर्रा ऐतिहासिक सिल्क मार्ग का भाग है, जो सिक्किम को चीन के प्रभुत्व वाले तिब्बत के स्वायत्त क्षेत्र से जोड़ता है। 

विश्व की तीसरी सबसे ऊंची पर्वत चोटी कंचनजंघा भी सिक्किम और नेपाल की सीमा पर ही स्थित है। सिक्किम के राजनीतिक इतिहास में नया मोड़ तब आया, जब संसद ने 35वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1974 और 36वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1975 को पारित कर सिक्किम को क्रमशः सह-राज्य और फिर देश के 22वें राज्य का दर्जा दिया। दरअसल, 36वें संशोधन के तहत संविधान में एक नया अनुच्छेद 241 (छ) जोड़ा गया है, जिसमें सिक्किम के बारे में विशेष प्रावधानों का उल्लेख है।

ताइवान

ताइवान

वर्ष 1949 में खत्म हुए चीनी गृहयुद्ध के बाद पहली बार चीन एवं ताइवान के बीच उच्च स्तरीय बैठक होने वाली है। उसी समय से चीन और ताइवान में अलग-अलग सरकारें हैं। सांस्कृतिक रूप से भले ही यह चीन जैसा ही है, लेकिन व्यावहारिक रूप से ताइवान स्वतंत्र देश है, जो खुद को रिपब्लिक ऑफ चाइना (चीनी गणराज्य) कहता है। इसकी राजधानी ताइपे है।

 लेकिन चीन का संविधान उसे अपने अधिकार क्षेत्र का हिस्सा मानता है। लंबे समय तक दोनों पक्षों के बीच तनातनी चलती रही है, जिसमें कुछ नरमी तब आई, जब मई, 2008 में चीन समर्थक मा यिंग जेइयु राष्ट्रपति बने। जुलाई, 2009 में दोनों देशों के नेताओं ने करीब साठ वर्षों बाद पहली बार सीधे संदेशों का आदान-प्रदान किया। और फिर जून, 2010 में दोनों देशों ने व्यापार समझौता किया। 

उसके बाद भी दोनों के संबंध तनावपूर्ण ही रहे हैं। ताइवानी सेना के हेलीकॉप्टर चीन की तरफ से संभावित हमले के मद्देनजर लगातार सजग रहते हैं। बार-बार प्रयास करने के बावजूद संयुक्त राष्ट्र में ताइवान को प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। कूटनीतिक रूप से अलग-थलग होने के बावजूद ताइवान एशिया का सबसे बड़ा व्यावसायिक और कंप्यूटर प्रौद्योगिकी का शीर्ष उत्पादक देश है।

 बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में तीव्र गति से औद्योगिकीकरण एवं विकास को दुनिया ताइवान मिरेकल के नाम से जानती है। हांगकांग, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर के साथ ताइवान चार विकसित एवं स्वतंत्र एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में गिना जाता है। 

1990 से पहले ताइवान में एक दलीय शासन था, लेकिन 2000 से वहां बहुदलीय लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था है। प्रेस की स्वतंत्रता, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, आर्थिक स्वतंत्रता एवं मानव विकास के मामले में उसका रिकॉर्ड शानदार है।

Monday, 10 February 2014

आईएएस, आईपीएस बनने के मिलेंगे दो और मौके

आईएएस, आईपीएस बनने के मिलेंगे दो और मौके

नई दिल्ली। सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे लाखों प्रतियोगियों के लिए अच्छी खबर है। संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की इस प्रतिष्ठित परीक्षा में किस्मत आजमाने के लिए प्रतियोगियों को अब दो और मौके मिलेंगे। साथ ही सभी वर्गों के प्रतियोगियों को अधिकतम उम्र सीमा में भी दो साल की छूट हासिल होगी। यह नियम सभी वर्गों के प्रतियोगियों पर लागू होगा। नया नियम इसी साल होने वाली परीक्षा से अमल में आ जाएगा।

कार्मिक मंत्रालय ने अपने आदेश में कहा है कि केंद्र सरकार ने सिविल सेवा परीक्षा 2014 से सभी वर्गों के प्रतियोगियों को दो अतिरिक्त अवसर देने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।
साथ ही कहा है कि यदि जरूरत पड़ी तो सभी वर्गों के प्रतियोगियों को अधिकतम उम्र सीमा में छूट भी मिलेगी। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने पिछले दिनों मिलने आए सिविल सेवा के प्रतियोगियों के एक प्रतिनिधिमंडल को इस संदर्भ में आश्वासन दिया था।

अधिसूचना के अनुसार, सामान्य वर्ग के प्रतियोगी के लिए निर्धारित उम्र 21 से 30 साल है। जबकि एससी/एससी वर्ग के प्रतियोगियों को पांच और ओबीसी को 3 साल की छूट मिली हुई है। इसके अलावा 1 जनवरी 1980 से 31 दिसंबर 1989 के दौरान जम्मू और कश्मीर में रहने वाले प्रतियोगी को अधिकतम उम्र में 5 साल की और छूट मिलती है।

चार मौके गंवा चुके प्रतियोगियों को सबसे ज्यादा लाभ ः सरकार के हालिया फैसले से उन प्रतियोगियों को सबसे ज्यादा लाभ होगा, जो चार प्रयासों में किस्मत आजमाने के बावजूद सफलता नहीं पा सके हैं या फिर जिनकी उम्र 30 साल हो चुकी है। कार्मिक मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि ऐसे प्रतियोगियों को 32 साल की उम्र तक दो और मौके मिलेंगे।

साथ ही अधिकारी ने कहा कि जो प्रतियोगी 30 साल की उम्र से पहले ही 6 अवसरों का लाभ ले चुके होंगे, उन्हें 32 साल तक की उम्र की छूट नहीं मिलेगी। साथ ही उम्र सीमा में छूट के संदर्भ में और अधिक स्पष्टीकरण जल्द ही जारी किया जाएगा।

केंद्र के कदम को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा रहा है। इस साल सिविल सेवा परीक्षा (प्रारंभिक) 24 अगस्त को आयोजित की जाएगी।

मौजूदा नियमों के अनुसार, सामान्य वर्ग के प्रतियोगी चार बार परीक्षा में बैठ सकते हैं। जबकि अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के प्रतियोगियों के लिए अवसरों की कोई सीमा तय नहीं है। सिविल सेवा परीक्षा 2013 के लिए जारी अधिसूचना के अनुसार, पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के प्रतियोगी अधिकतम सात बार परीक्षा में भाग्य आजमा सकते थे।

अभी तक मिलते हैं मौके
सामान्य
4 (30 साल की उम्र तक)
ओबीसी
7 (33 साल की उम्र तक)
एससी/एसटी
21 से 35 साल की उम्र तक कितनी भी बार