पूर्वोत्तर परिषद
पूर्वोत्तर के छात्रों को नस्लीय भेदभाव से राहत एवं सुरक्षा दिलाने के लिए पूर्वोत्तर परिषद (नॉर्थ ईस्टर्न काउंसिल) ने दिल्ली और बंगलूरू में उनके लिए अलग हॉस्टल बनाने का फैसला किया है।
पूर्वोत्तर परिषद का गठन केंद्र सरकार ने वर्ष 1971 में देश के पूर्वोत्तर क्षेत्र के सात राज्यों-अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड और त्रिपुरा के सामाजिक एवं आर्थिक विकास को गति देने के लिए किया था।
वर्ष 2002 में एनईसी ऐक्ट में संशोधन करके इसमें सिक्किम को भी शामिल किया गया। इसका मुख्यालय शिलांग में है और यह केंद्र सरकार के पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय के अधीन काम करता है। राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत अध्यक्ष एवं तीन सदस्यों के अलावा संबंधित राज्यों के मुख्यमंत्री एवं राज्यपाल इसके प्रतिनिधि होते हैं।
1972 से काम करने वाली इस परिषद ने पूर्वोत्तर राज्यों में संगठित एवं सुनियोजित प्रयास से तीव्र विकास के एक नए अध्याय की शुरुआत की। यह पूर्वोत्तर राज्यों के साझा हितों (संचार, परिवहन, बाढ़ नियंत्रण, ऊर्जा आदि) से संबंधित मामलों में विचार कर केंद्र सरकार को सलाह देती है। चूंकि ये राज्य अन्य प्रांतों की तुलना में पिछड़े हैं,
इसलिए परिषद उनके आर्थिक एवं सामाजिक विकास से संबंधित योजनाओं का ख्याल रखती है और अंतरराज्यीय विवादों को सुलझाती है। करीब चार दशकों से ज्यादा के कार्यकाल में इस परिषद की झोली में कई उपलब्धियां हैं। मसलन, विद्युतीकरण एवं शिक्षा के क्षेत्र में इसने काम किया है
और 250 मेगावाट के विद्युत उत्पादन परियोजना के जरिये पश्चिम बंगाल एवं ओडिशा पर विद्युत निर्भरता घटाई है। मुख्यतः यह केंद्र के वित्तीय सहयोग पर निर्भर है, लेकिन संबंधित राज्यों से भी इसे आर्थिक सहायता मिलती है।
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