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Wednesday, 5 February 2014

फैबियन सोशलिज्म

फैबियन सोशलिज्म

इन दिनों रियायत की राजनीति को लेकर बहस छिड़ी हुई है। बाजार के पैरोकारों का मानना है कि अब फैबियन सोशलिज्म का रास्ता छोड़कर देश के आर्थिक विकास की नई इबारत लिखने के लिए बाजार को एक मौका देना चाहिए। फैबियन सोशलिज्म समाजवाद की विकासमूलक विचारधारा है, जो मार्क्स एवं लेनिन की क्रांतिकारी विचारधारा से अलग है। 

यह आर्थिक गतिविधियों में एक प्रभावी, निष्पक्ष प्रशासित राज्य की नियमित भागीदारी की वकालत करती है। इस विचारधारा की उत्पत्ति ब्रिटेन की फैबियन सोसाइटी से हुई है। फैबियन सोसाइटी का नाम रोमन जनरल फैबियस मैक्सिमस के नाम पर रखा गया था, जो लड़ाई के मैदान में सीधे मुकाबला करने के बजाय दुश्मनों को धैर्यपूर्वक उत्पीड़ित करके विजय पाने की रणनीति में विश्वास करते थे। फैबियन समाजवादी चरणबद्ध तरीके से राजनीतिक एवं आर्थिक सुधार के हामी थे। 

एक वाक्य में कहें, तो यह कानून के दायरे में क्रमिक सुधारों के जरिये लोकतांत्रिक समाजवाद की स्थापना की वकालत करने वाली विचारधारा है। फैबियन सोशलिज्म का प्रमुख उद्देश्य सत्ता, धन और अवसरों की समानता को बढ़ावा देना, सामूहिक कार्य एवं सार्वजनिक सेवाओं को प्रोत्साहित करना, एक जवाबदेह, सहिष्णु एवं सक्रिय लोकतंत्र की स्थापना करना और स्वतंत्रता, मानवाधिकार, सतत विकास एवं बहुपक्षीय अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना है।

 फैबियन समाजवाद के काम करने का ठेठ तरीका है, निजी उद्योगों को चरणबद्ध तरीके से राष्ट्रीयकृत करना और अंततः पूरी अर्थव्यवस्था पर राज्य का नियंत्रण स्थापित करना। जवाहरलाल नेहरू फैबियन सोशलिज्म से काफी प्रभावित थे, इसलिए उनकी आर्थिक नीतियों पर फैबियन सोशलिज्म का स्पष्ट प्रभाव दिखता है।

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