प्राइमरी चुनाव प्रणाली
पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी की पहल पर कांग्रेस ने आगामी लोकसभा चुनाव के लिए प्रायोगिक तौर पर 16 संसदीय क्षेत्रों में उम्मीदवारों के चयन के लिए प्राइमरी चुनाव प्रणाली अपनाने की घोषणा की है। यदि यह प्रयोग सफल रहा, तो भविष्य में भी कांग्रेस उम्मीदवारों के चयन के लिए यह प्रक्रिया अपनाएगी।
प्राइमरी चुनाव के जरिये कोई पार्टी चुनाव के लिए अपने प्रत्याशी का चयन करती है। इस प्रणाली का व्यापक प्रचलन अमेरिका में प्रगतिशील आंदोलन के दौरान हुआ, जब चयन का अधिकार पार्टी पदाधिकारियों से लेकर पंजीकृत मतदाताओं के हाथों में सौंप दिया गया।
जहां प्राइमरी चुनाव प्रशासन के बजाय दलों द्वारा आयोजित होते हैं, वहां दो तरह से ये चुनाव होते हैं-क्लोज्ड यानी दलगत और ओपेन यानी गैर दलगत। दलगत चुनावों में केवल पार्टी के सदस्य ही उम्मीदवारों के चयन के लिए वोट डाल सकते हैं, जबकि गैर दलगत प्राइमरी चुनाव में मतदाता उम्मीदवारों का चयन करते हैं। प्राइमरी चुनाव प्रत्यक्ष एवं परोक्ष तरीके से भी हो सकता है।
प्रत्यक्ष प्राइमरी चुनाव में मतदाता वोट डालकर उम्मीदवार का चयन करते हैं, जबकि परोक्ष प्राइमरी चुनाव में मतदाता अपने प्रतिनिधि का चुनाव करते हैं और चुने हुए प्रतिनिधि उम्मीदवार मनोनीत करते हैं। राष्ट्रपति चुनाव के लिए पहली बार न्यू हैंपशायर ने 1916 में इसे अपनाया।
हालांकि 1970 के दशक तक अमेरिका के 20 से कम राज्यों में ही इसका प्रयोग होता था, पर मीडिया द्वारा इसे महत्व दिए जाने से अन्य राज्यों ने भी इसमें दिलचस्पी दिखाई। प्रत्याशियों के चयन में पारदर्शिता एवं राजनीतिक स्वच्छता के लिहाज से महत्वपूर्ण यह प्रणाली यूरोपीय देशों, इटली, फ्रांस, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ, चिली, उरुग्वे आदि में भी प्रचलित है।
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