रियांग जनजाति
इन दिनों मिजोरम में बहुसंख्यक मिजो एवं अल्पसंख्यक रियांग (जिसे ब्रु जनजाति भी कहा जाता है) जनजाति के बीच तनाव काफी गहरा गया है और कथित तौर पर रियांग जनजाति के लोग पलायन के लिए मजबूर किए जा रहे हैं। दोनों समुदायों के बीच संघर्ष कोई नई बात नहीं है। पिछले 17 वर्षों से यह संघर्ष सुलगता रहा है।
वर्ष 1997 एवं 2009 में भी संघर्षपूर्ण स्थिति के चलते रियांग जनजाति के हजारों लोगों को अपना घर-बार छोड़कर भागना पड़ा था। रियांग देश की 75 आदिम जनजातियों में से एक है। कहा जाता है कि यह म्यांमार के शान राज्य के पहाड़ी इलाकों से आकर त्रिपुरा में बसी है। त्रिपुरा के अलावा यह जनजाति मिजोरम, असम, मणिपुर और बांग्लादेश में भी पाई जाती है।
वे रियांग बोली बोलते हैं, जो तिब्बत-बर्मी भाषा परिवार का अंग है। पूर्वोत्तर की अन्य जनजातियों की तरह रियांग जनजाति के लोगों की शक्ल भी मंगोलों से मिलती-जुलती है। त्रिपुरी के बाद यह त्रिपुरा की दूसरी सबसे बड़ी जनजाति है। रियांग जनजाति मुख्यतः दो बड़े गुटों में विभाजित है-मेस्का और मोलसोई। यह मुख्यतः कृषि पर निर्भर रहने वाली जनजाति है।
पहले ये लोग ज्यादातर झूम खेती करते थे, पर अब वे खेती के आधुनिक तौर-तरीके अपना रहे हैं। पढ़े-लिखे लोगों ने सरकारी नौकरी में भी जगह बनाई है। इस समुदाय के कई लोग नौकरशाही में उच्च पदों पर पहुंचे हैं, और कुछ ने अपना व्यवसाय भी शुरू किया है।
अपने ही समुदाय में शादी करने वाली यह जनजाति पारंपरिक वेशभूषा धारण करती है और नृत्य इसके जीवन का अभिन्न अंग है। धार्मिक रूप से हिंदू धर्म के वैष्णव संप्रदाय को मानने वाली रियांग जनजाति के प्रमुख को राय कहा जाता है, जो विवाह एवं तलाक की अनुमति देता है और आपसी झगड़े निपटाता है।
खुली खिड़की
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