ताइवान
वर्ष 1949 में खत्म हुए चीनी गृहयुद्ध के बाद पहली बार चीन एवं ताइवान के बीच उच्च स्तरीय बैठक होने वाली है। उसी समय से चीन और ताइवान में अलग-अलग सरकारें हैं। सांस्कृतिक रूप से भले ही यह चीन जैसा ही है, लेकिन व्यावहारिक रूप से ताइवान स्वतंत्र देश है, जो खुद को रिपब्लिक ऑफ चाइना (चीनी गणराज्य) कहता है। इसकी राजधानी ताइपे है।
लेकिन चीन का संविधान उसे अपने अधिकार क्षेत्र का हिस्सा मानता है। लंबे समय तक दोनों पक्षों के बीच तनातनी चलती रही है, जिसमें कुछ नरमी तब आई, जब मई, 2008 में चीन समर्थक मा यिंग जेइयु राष्ट्रपति बने। जुलाई, 2009 में दोनों देशों के नेताओं ने करीब साठ वर्षों बाद पहली बार सीधे संदेशों का आदान-प्रदान किया। और फिर जून, 2010 में दोनों देशों ने व्यापार समझौता किया।
उसके बाद भी दोनों के संबंध तनावपूर्ण ही रहे हैं। ताइवानी सेना के हेलीकॉप्टर चीन की तरफ से संभावित हमले के मद्देनजर लगातार सजग रहते हैं। बार-बार प्रयास करने के बावजूद संयुक्त राष्ट्र में ताइवान को प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। कूटनीतिक रूप से अलग-थलग होने के बावजूद ताइवान एशिया का सबसे बड़ा व्यावसायिक और कंप्यूटर प्रौद्योगिकी का शीर्ष उत्पादक देश है।
बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में तीव्र गति से औद्योगिकीकरण एवं विकास को दुनिया ताइवान मिरेकल के नाम से जानती है। हांगकांग, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर के साथ ताइवान चार विकसित एवं स्वतंत्र एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में गिना जाता है।
1990 से पहले ताइवान में एक दलीय शासन था, लेकिन 2000 से वहां बहुदलीय लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था है। प्रेस की स्वतंत्रता, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, आर्थिक स्वतंत्रता एवं मानव विकास के मामले में उसका रिकॉर्ड शानदार है।
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