टीकेडीएल
पिछले कुछ वर्षों से चीन की दवा कंपनियों द्वारा भारत के औषधीय पौधों के पेटेंट कराने की कोशिशों को ट्रेडिशनल नॉलेज डिजिटल लाइब्रेरी (टीकेडीएल) ने नाकाम कर दिया है।
यह संस्था पारंपरिक ज्ञान, खासकर औषधीय पौधों और भारतीय चिकित्सा पद्धति में उनके उपयोग के ज्ञान का डिजिटल भंडार है। इसकी स्थापना वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय एवं आयुष विभाग के सहयोग से वर्ष 2001 में की गई थी। इसका लक्ष्य देश के प्राचीन एवं पारंपरिक ज्ञान को अनैतिक पेटेंट एवं जैव वैज्ञानिक चोरी से बचाना है
इसके अलावा इसका गैर पेटेंट डाटाबेस पारंपरिक ज्ञान पर आधारित आधुनिक अनुसंधान को बढ़ावा देता है। इस डाटाबेस के माध्यम से अनुसंधानकर्ताओं के लिए इलाज के विशाल ज्ञान भंडार तक पहुंच सुलभ हो जाती है। चूंकि हमारे देश का ज्यादातर पारंपरिक ज्ञान संस्कृत, उर्दू, फारसी एवं तमिल में उपलब्ध है, इसलिए डाटाबेस तैयार करने के लिए उन्हें पांच अंतरराष्ट्रीय भाषाओं (अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, स्पैनिश और जापानी) में अनूदित किया गया।
मई, 2010 तक टीकेडीएल ने आयुर्वेद के 85,500, यूनानी के 1,20,200 एवं तमिल सिद्ध के 13,470 सूत्रों के रूपांतरण का काम पूरा कर लिया था। योग के 1098 आसनों को भी डाटाबेस में डाला गया है। इस तरह कुल 2,20,268 औषधीय सूत्रों को डाटाबेस में डाला गया है।
इसके अलावा टीकेडीएल ने पारंपरिक भारतीय ज्ञान को बचाने के लिए यूरोपीय पेटेंट ऑफिस, यूनाइटेड किंगडम ट्रेडमार्क ऐंड पेटेंट ऑफिस और यूनाइटेड स्टेट्स पेटेंट ऐंड ट्रेडमार्क ऑफिस जैसी अंतरराष्ट्रीय पेटेंट कार्यालयों से समझौता किया है, ताकि वे किसी को पेटेंट मंजूरी देने से पहले टीकेडीएल के डाटाबेस से उसे जांच लें।
No comments:
Post a Comment