विशेषाधिकार समिति
लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने 13 फरवरी को लोकसभा के भीतर एक सांसद द्वारा तेलंगाना के विरोध में मिर्च स्प्रे का छिड़काव करने के मामले की जांच संसद की विशेषाधिकार समिति को सौंप दी है।
सदन की कार्यवाही एवं आचरण की नियमावली की नियम संख्या 227 के अंतर्गत यह मामला विशेषाधिकार समिति को सौंपा गया है। संसद के दोनों सदनों में विशेषाधिकार समिति का गठन अध्यक्ष या सभापति द्वारा किया जाता है। इस समिति में विभिन्न दलों को सदस्य संख्या के आधार पर प्रतिनिधित्व दिया जाता है।
लोकसभा की विशेषाधिकार समिति में 15 सदस्य होते हैं। जब भी संसद के दोनों सदनों या किसी भी सांसद के विशेषाधिकार के उल्लंघन या अवमानना का मामला सामने आता है, तो ऐसे मामलों की जांच विशेषाधिकार समिति को सौंपी जाती है। इसी समिति की रिपोर्ट के आधार पर विशेषाधिकार का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को दंडित किया जाता है।
विशेषाधिकार समिति के पास अन्य शक्तियों के अलावा दोषी व्यक्ति को दंडित करने की, जिसमें जेल भेजने से लेकर सदन से निष्काषित करना भी शामिल है, सिफारिश करने का अधिकार होता है। संसद के अलावा राज्यों की विधानसभाओं में भी विशेषाधिकार समिति होती है।
इससे पहले भी संसद में विशेषाधिकार उल्लंघन के मामले सामने आए हैं। 1967 में दो लोगों को दर्शक दीर्घा से पर्चे फेंकने और 1983 में नारे लगाने एवं चप्पल फेंकने के मामले में एक व्यक्ति को पकड़ा गया था और इन दोनों मामलों में दोषी व्यक्तियों को सामान्य कैद की सजा दी गई थी। 2008 में एक उर्दू साप्ताहिक के संपादक को राज्यसभा के सभापति को ′कायर′ बताने पर विशेषाधिकार उल्लंघन का दोषी पाया गया था।
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