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Monday, 24 February 2014

अर्बन हीट आइलैंड

अर्बन हीट आइलैंड

जब से दिल्ली की आबोहवा के बीजिंग से भी खराब होने की चर्चा चली है, तभी से पर्यावरण पर तरह-तरह के अध्ययन निष्कर्ष सामने आ रहे हैं। अभी हाल ही में एक संगठन ने सर्वे के जरिये बताया है कि दिल्ली के कई इलाके शहरी ग्रीष्म द्वीप (अर्बन हीट आइलैंड) बन गए हैं। 

अर्बन हीट आइलैंड (यूएचआई) वैसे महानगरीय इलाके को कहा जाता है, जो मानवीय गतिविधियों के कारण अपने आसपास के ग्रामीण इलाकों की तुलना में अत्यधिक गर्म होता है। इसके बारे में सबसे पहले चर्चा 1810 के दशक में ल्यूक हॉवर्ड ने की थी, हालांकि उन्होंने इसे नाम नहीं दिया था। 

यूएचआई प्रभाव मुख्यतः जमीन की सतह में परिवर्तन यानी बढ़ते शहरीकरण (जिसमें लघु तरंग विकिरण को संचित करने वाली सामग्रियों, जैसे कंकरीट, डामर आदि का उपयोग होता है) के कारण होता है। इसके अलावा ऊर्जा के उपभोग से उत्पन्न ताप में बढ़ोतरी, पेड़-पौधों में कमी, वाहनों की बढ़ती संख्या तथा बढ़ती आबादी का भी इसमें योगदान होता है।

 कभी-कभी ऐसे क्षेत्रों को भी ग्रीष्म द्वीप कहा जाता है, जहां की आबादी भले ही ज्यादा न हो, पर आसपास के इलाकों की तुलना में वहां का तापमान लगातार बढ़ता रहता है। न्यूयॉर्क, टोक्यो, मुंबई, दिल्ली जैसे महानगर शहरी ग्रीष्म द्वीप के उदाहरण हैं।

 यूएचआई की वजह से शहरों में वर्षा बढ़ जाती है। तापमान बढ़ने से फसलों के पकने का समय भी बढ़ जाता है। यूएचआई की वजह से प्रदूषण बढ़ता है, वायु एवं जल की गुणवत्ता घटती है, जिससे पारिस्थितिकी पर दबाव बनता है। मानव स्वास्थ्य पर भी इसका बुरा असर पड़ता है। यूएचआई शहरों में गर्म हवाओं (लू) के परिणाम एवं उसकी अवधि को बढ़ाते हैं, जिससे काफी मौतें होती हैं।

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