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Monday, 18 November 2013

भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम

भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम
जबसे गुजरात सरकार द्वारा एक युवा महिला की कथित जासूसी करवाने से संबंधित मामला सामने आया है, राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के साथ यह सवाल भी उठाया जा रहा है कि आखिर भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम के किस प्रावधान के तहत यह जासूसी कराई गई। हमारे देश में जो टेलीग्राफ कानून है, वह मूल रूप से अंग्रेजों के समय का है। यह कानून एक अक्तूबर, 1885 को लागू किया गया था। हालांकि उसमें संशोधन होते रहे हैं। भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 के तहत केंद्र सरकार या राज्य सरकार को आपातकाल या लोक-सुरक्षा के हित में फोन संदेश को प्रतिबंधित करने एवं उसे टेप करने तथा उसकी निगरानी का अधिकार हासिल है। नियम 419 एवं 419 ए में टेलीफोन संदेशों की निगरानी एवं पाबंदी लगाने की प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है। केवल सरकारी एजेंसियों को ही यह अधिकार हासिल है कि वह गृह मंत्रालय से पूर्व इजाजत लेकर किसी व्यक्ति का फोन टेप कर सकती हैं। हालांकि वित्त मंत्रालय एवं सीबीआई को यह अधिकार है कि सुरक्षा या कार्रवाई की वजह से वह गृह मंत्रालय की पूर्व इजाजत के बिना 72 घंटे तक किसी भी व्यक्ति का फोन टेप कर सकती है। फोन टेप करने की इजाजत केंद्र एवं राज्य सरकारों के गृह सचिव द्वारा दो महीने के लिए जारी की जाती है, जरूरत पड़ने पर उसे छह महीने तक बढ़ाया जा सकता है। हमारे देश में फोन टेप करने के लिए कोर्ट की इजाजत लेने की जरूरत नहीं है, जैसा कि अन्य देशों में है। सेंट्रल मॉनिटरिंग सिस्टम के अस्तित्व में आने से न्यायिक हस्तक्षेप की गुंजाइश को बिल्कुल ही खारिज कर दिया गया है। अवैध रूप से फोन टेप करना निजता के अधिकार का उल्लंघन है और इसके लिए तीन वर्ष तक की कैद एवं जुर्माने का प्रावधान है।

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