तहलका प्रमुख तरुण तेजपाल पर लगे यौन शोषण के आरोपों की जांच चूंकि अब पुलिस खुद कर रही है,
इसलिए कहा जा रहा है कि विशाखा दिशा-निर्देश के तहत इस मामले की जांच का अब कोई औचित्य नहीं है। विशाखा दिशा-निर्देश मूलतः सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कार्यस्थल पर महिलाओं के खिलाफ होने वाले यौन शोषण को रोकने संबंधी प्रावधान हैं।
विशाखा महिलाओं का एक अधिकार समूह है, जिसने सर्वोच्च न्यायालय में लोकहित याचिका दायर कर यह गुजारिश की थी कि कार्यस्थल पर महिलाओं के खिलाफ होने वाले यौन शोषण को रोकने के लिए वह कुछ प्रावधान बनाए। उसकी यह मांग राजस्थान की सामाजिक कार्यकर्ता भंवरी देवी बलात्कार कांड के संदर्भ में थी।
विशाखा दिशा-निर्देश 1997 में अस्तित्व में आया। जिया मोदी ने अपनी किताब टेन जजमेंट दैट चेंज्ड इंडिया में लिखा है कि विशाखा बनाम राजस्थान राज्य के संदर्भ में आया यह दिशा-निर्देश न्यायिक सक्रियता का चरमोत्कर्ष है। इस दिशा-निर्देश के तहत कंपनी की यह जिम्मेदारी है कि वह गुनाहगार के खिलाफ कार्रवाई करे।
सुरक्षा को कामकाजी महिलाओं का मौलिक अधिकार मानते हुए इस निर्देश में यह कहा गया है कि शिकायत के संदर्भ में हर कंपनी में महिला-कमेटी बनाना अनिवार्य है, जिसकी अध्यक्षता न सिर्फ कोई महिलाकर्मी करेगी, बल्कि इसकी आधी सदस्य महिलाएं होंगी। सर्वोच्च न्यायालय ने दस से ज्यादा निर्देश दिए हैं, जिनके तहत अनुशासनात्मक से लेकर आपाराधिक कार्रवाई किए जाने की बात कही गई है। यौन शोषण के तहत शारीरिक छेड़छाड़, छूना, यौन आग्रह करना, अश्लील वीडियो या तस्वीर दिखाना, आपत्तिजनक व्यवहार या इशारा करना आता है।
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