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Thursday 21 November 2013

हल्दी के एक और गुण पर मेडिकल साइंस की मुहर

हल्दी के एक और गुण पर मेडिकल साइंस की मुहर
खूनी दस्त से छुटकारा दिलाने में हल्दी कारगर
 आशीष वर्मा
चंडीगढ़। हल्दी के एक और गुण पर मेडिकल साइंस ने मुहर लगा दी है। पीजीआई के गैस्ट्रोएंटरोलॉजी डिपार्टमेंट की रिसर्च के मुताबिक खूनी दस्त (अल्सररेटिव कोलाइटिस) में हल्दी का इस्तेमाल एक अचूक इलाज है। सुबह-शाम लगातार आठ हफ्ते तक हल्दी लेने से रोगी को खूनी दस्त से छुटकारा मिल जाएगा। इसके इस्तेमाल से आंत के जख्म भी पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं।
पीजीआई में 53 रोगियों पर आधारित यह रिसर्च हाल ही में पूरी हुई है। रिसर्च के मुताबिक खूनी दस्त से पीड़ित 53 मरीज को दो हिस्सों में बांटा गया। 28 मरीजों के एक वर्ग को हल्दी दी गई, जबकि दूसरे 25 मरीजों के वर्ग को स्टार्च से बना हल्दी जैसा पाउडर दिया गया। आठ हफ्ते तक रोजाना इन मरीजों पर निगरानी रखी गई। उसके बाद जब आंत का टेस्ट किया गया तो जख्म पूरी तरह से भर चुके थे और दस्त में खून आना भी बंद हो गया था। हल्दी में कुरकुमीन नाम का पदार्थ पाया जाता है, जिसमें मेडिसिन प्रापर्टी होती है और दवाई का काम करता है। रिसर्च से पहले हल्दी की शुद्धता मोहाली के नाइपर इंस्टीट्यूट में चेक कराई गई। टेस्ट में कुरकुमीन करीब 3.56% निकला, जो काफी अच्छा माना जाता है।
पीजीआई में हुई आठ हफ्ते की रिसर्च में हुआ खुलासा
हल्दी एक एंटीसेप्टिक है। इसमें कीटाणुओं को मारने की बेहतरीन क्षमता है। जिन लोगों के दस्त में खून आता है, उन लोगों को हल्दी खानी चाहिए। लगातार सेवन से यह बीमारी पूरी तरह से ठीक हो जाती है।
-डा. उषा दत्ता, एडिशनल प्रोफेसर गैस्ट्रोएंटरोलॉजी, पीजीआई
हल्दी का ऐसे करें प्रयोग
रिसर्च टीम की लीडर डॉ. दत्ता के मुताबिक सूखी हल्दी बाजार से खरीदें और उसे घर पर या बाजार की चक्की में पिसवाएं। दस्त में खून आने पर पीड़ित रोगियों को सुबह-शाम पांच ग्राम हल्दी खानी चाहिए। कच्ची हल्दी भी खा सकते हैं। हल्दी को गर्म पानी में उबालना नहीं चाहिए।
क्यों आता है दस्त में खून
दस्त में खून आने की कई वजह हो सकती हैं। कई लोगों के पेट में कीड़े होते हैं। ये कीड़े धीरे-धीरे आंत में जख्मी कर देते हैं और दस्त में खून आने लगता है। मेडिकल साइंस में इसका पुख्ता इलाज उपलब्ध है, जो काफी महंगा है। इलाज के दौरान दी जाने वाली दवाओं के अपने साइड इफेक्ट भी हैं। यह बीमारी करीब 20 से 50 वर्ष की उम्र में होती है।

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