जीरो एफआईआर
सचिवालय में तैनात उत्तराखंड से संबंधित एक अपर सचिव पर एक युवती द्वारा दिल्ली में दर्ज कराए गए दुष्कर्म के मामले में दिल्ली पुलिस जीरो एफआईआर (जीरो प्रथम सूचना रिपोर्ट) दर्ज कर मामले की जांच कर रही है। जीरो एफआईआर उसे कहते हैं, जब कोई महिला उसके विरुद्ध हुए संज्ञेय अपराध के बारे में घटनास्थल से बाहर के पुलिस थाने में प्राथमिकी दर्ज करवाए। इसमें घटना की अपराध संख्या दर्ज नहीं की जाती। हमारे देश की न्याय व्यवस्था के अनुसार, संज्ञेय अपराध होने की दशा में घटना की एफआईआर किसी भी जिले में दर्ज कराई जा सकती है। चूंकि यह मुकदमा घटना वाले स्थान पर दर्ज नहीं होता, इसलिए तत्काल इसका नंबर नहीं दिया जाता, लेकिन जब उसे घटना वाले स्थान पर स्थानांतरित किया जाता है, तब अपराध संख्या दर्ज कर ली जाती है। असल में, अपराध दो तरह के होते हैं, पहला संज्ञेय (गोली चलाना, हत्या, बलात्कार जैसे गंभीर अपराध) और दूसरा असंज्ञेय (मामूली मारपीट आदि)। असंज्ञेय में सीधे तौर पर एफआईआर दर्ज नहीं करके शिकायत को मजिस्ट्रेट के पास भेज दिया जाता है, और फिर मजिस्ट्रेट आरोपी को समन जारी करता है, जबकि संज्ञेय अपराध में एफआईआर दर्ज करना जरूरी है; यह व्यवस्था सीआरपीसी की धारा,154 के तहत की गई है। जीरो एफआईआर के पीछे सोच यह थी कि किसी भी थाने में शिकायत दर्ज कर मामले की जांच शुरू की जाए और सबूत एकत्र किए जाएं। शिकायत दर्ज नहीं होने की स्थिति में सबूत नष्ट होने का खतरा होता है। जीरो एफआईआर हो या सामान्य एफआईआर, दर्ज की गई शिकायत को सुनकर/ पढ़कर उस पर शिकायती का हस्ताक्षर करना अनिवार्य कानूनी प्रावधान है।
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