लोक अदालत
न्यायिक व्यवस्था पर बढ़ते मुकदमों के बोझ को कम करने की पहल के तहत शनिवार को पूरे देश में एक साथ लोक अदालतें लगीं और एक दिन में 28.26 लाख मुकदमों का निपटारा कर विश्व रिकॉर्ड बनाया गया। लोक अदालत, असल में, हमारे देश में विवादों के निपटारे का वैकल्पिक माध्यम है। इसे बोलचाल की भाषा में ′लोगों की अदालत′ भी कहते हैं। इसके गठन का आधार 1976 का 42वां संविधान संशोधन है, जिसके तहत अनुच्छेद 39 में आर्थिक न्याय की अवधारणा जोड़ी गई और शासन से अपेक्षा की गई कि वह यह सुनिश्चित करेगा कि देश का कोई भी नागरिक आर्थिक या किसी अन्य अक्षमताओं के कारण न्याय पाने से वंचित न रह जाए। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सबसे पहले 1980 में केंद्र सरकार के निर्देश पर सारे देश में कानूनी सहायता बोर्ड की स्थापना की गई, और फिर बाद में इसे कानूनी जामा पहनाने के लिए विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 पारित किया गया। यह अधिनियम नौ नवंबर, 1995 को लागू हुआ और विधिक सहायता एवं स्थायी लोक अदालतें अस्तित्व में आईं।
लोक अदालत का मुख्य उद्देश्य है, विवादों का आपसी सहमति से समझौता कराना। इसकी सभी कार्यवाही सिविल कोर्ट की कार्यवाही समझी जाती है और इसके फैसले न्यायिक समझे जाते हैं। इस अदालत की खासियत यह है कि अगर सभी पक्षों में आम राय बन जाती है, तो फिर यहां के फैसले को किसी और अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती; यहां तक कि धारा 226 के तहत भी नहीं। लोक अदालत सभी दीवानी मामलों, वैवाहिक विवाद, भूमि विवाद, बंटवारे या संपत्ति विवाद, श्रम विवाद आदि गैर-आपराधिक मामलों का निपटारा करती है।
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