Tuesday, 31 December 2013
Monday, 30 December 2013
क्रॉसवर्ड (वर्ग पहेली)
क्रॉसवर्ड
पिछले दिनों क्रॉसवर्ड ने, जिसे हिंदी में हम शब्द पहेली या वर्ग पहेली कहते हैं, सौ वर्ष पूरा कर लिया। इसकी शुरुआत करने का श्रेय लिवरपुल के आर्थर वेन नाम के उस व्यक्ति को जाता है, जो खेती छोड़कर पत्रकार बनने के लिए अमेरिका गया था।
न्यूयॉर्क वर्ल्ड का संपादक बनने के बाद उसने 21 दिसंबर, 1913 को अपने रविवारीय अंक में एक वर्ग पहेली (क्रॉसवर्ड) प्रकाशित किया। वह क्रॉसवर्ड हालांकि आज के क्रॉसवर्ड से अलग था, क्योंकि उसका आकार हीरे के आकार जैसा था और उसके भीतर कोई भी काला वर्ग नहीं था, लेकिन उसमें इस विधा की तमाम विशेषताएं मौजूद थीं।
आर्थर वेन के मुताबिक, क्रॉसवर्ड उतना ही पुराना है, जितनी पुरानी भाषा है। 1920 के दशक के दौरान अन्य अखबारों ने भी दिमागी कसरत के इस नए साधन का प्रकाशन शुरू किया और एक दशक के भीतर ही लगभग सभी अमेरिकी अखबारों में यह छपने लगा। एक दशक बाद ही यह यूरोप के देशों में भी लोकप्रिय हो गया। संडे एक्सप्रेस पहला ब्रिटिश अखबार था, जिसने 1924 में क्रॉसवर्ड प्रकाशित किया। ब्रिटेन में पहली बार 1922 में पियर्सन्स मैगजीन में क्रॉसवर्ड प्रकाशित हुआ।
शीघ्र ही ब्रिटिश क्रॉसवर्ड ने अपनी अलग शैली विकसित की। यह अमेरिकी क्रॉसवर्ड की तुलना में कठिन थी। क्रॉसवर्ड की पहली पुस्तक वर्ष 1924 में साइमन और शूस्टर द्वारा प्रकाशित की गई। उस अनूठी पुस्तक के साथ एक पेंसिल भी जुड़ी होती थी। क्रॉसवर्ड शब्द पहली बार डिक्शनरी में 1930 में शामिल किया गया। आज दुनिया भर की विभिन्न भाषाओं, मसलन-फ्रेंच, स्पेनिश, इतालवी, जर्मन, डच, हिंदी, हंगेरियन, रूसी, पुर्तगाली आदि में क्रॉसवर्ड (वर्ग पहेली) प्रकाशित हो रहे हैं और वे काफी लोकप्रिय हैं।
Saturday, 28 December 2013
Thursday, 26 December 2013
12 Uses For Cloves
On the ORAC (Oxygen Radical Absorbance Capacity) scale used by the National Institute on Aging in the National Institutes of Health (NIH) to assess the antioxidant value of foods, clove has the highest ORAC score. Besides it’s ability to prevent cancer, clove has incredible purification and protection properties within.
Cloves are a very common spice widely used all over the world. It is renowned for its rich aroma and flavour.
1) Consuming a couple of cloves can help to cleanse your body from harmful toxins and microbes. This will help to boost your health.
2) Cloves help to protect the damage caused to your body’s cells and help to stimulate energy in every part of your body.
3) Cloves help give you quick relief from toothache. Just place a piece of clove on the affected area, and gain instant relief.
4) The presence of eugenol, in cloves gives it a lovely aroma and helps in numbing dental pain and clearing out bacteria in the mouth.
5) You can also use cloves as a mosquito repellent. Clove can effectively help to ward off mosquitoes.
6) Cloves also have great anti-inflammatory properties. Use cloves to treat inflammation and infections.
7) If you are troubled with digestion problems, chew on a couple of cloves.
8) Cloves also aid with cardiac and diabetes health.
9) Due to its purification properties, cloves help in purifying your blood.
10) Ayurveda suggests making a tea to lessen, or prevent, colds and flu. It is also used as an expectorant, making it easier to cough up phlegm. Cloves are a natural painkiller and also attack germs, so they’ll help you get rid of that sore throat.
11) Sometimes used as an aphrodisiac, cloves can also help men from reaching orgasm too early.
12) Cloves treats scrapes and bruises. They are pretty strong and can sting, so the best bet is to probably make a poultice with a little olive oil.
राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान
राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान
उच्चतर शिक्षा विभाग राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान के तहत बारहवीं पंचवर्षीय योजना में पूरे देश में 35 क्लस्टर विश्वविद्यालय स्थापित करने वाला है। अपनी तरह के इस अनूठे प्रयोग के तहत कुछ कॉलेजों के समूह को एक साथ मिलाकर उन्हें विश्वविद्यालय का दर्जा दिया जाएगा और ऐसे विश्वविद्यालयों को क्लस्टर विश्वविद्यालय कहा जाएगा।
यह अभियान केंद्र प्रायोजित एक नई योजना है, जो मुख्यतः राज्यों के उच्च शिक्षण संस्थानों में सुधार पर जोर देगी। इसके तहत राज्यों के अधीन चलने वाले 316 विश्वविद्यालय एवं 13,024 कॉलेज आएंगे। इस अभियान का मुख्य लक्ष्य उच्च शिक्षा के क्षेत्र में राज्य स्तर पर योजनाबद्ध विकास के जरिये पहुंच, समानता, एवं शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाना है।
इसके तहत सकल पंजीयन अनुपात को 19 फीसदी से बढ़ाकर 30 फीसदी करने का लक्ष्य प्रस्तावित है। उम्मीद जताई जा रही है कि यह अभियान नए शिक्षण संस्थानों के निर्माण, मौजूदा संस्थानों के विस्तार और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के मामले में आत्मनिर्भर बनाने में मददगार साबित होगा।
इसके तहत कॉलेजों में तकनीक, खेल और शोध संबंधी आधारभूत संरचनाओं के निर्माण पर भी जोर दिया जाएगा। इसके लिए केंद्र एवं राज्यों द्वारा प्रदर्शन के आधार पर वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाएगी, जिसका अनुपात पूर्वोत्तर राज्यों एवं जम्मू-कश्मीर में 90:10, सिक्किम, हिमाचल प्रदेश एवं उत्तराखंड जैसे
विशेष श्रेणी के राज्यों में 75:25 और अन्य राज्यों में 65:35 होगा। यदि सरकारी सहायता प्राप्त निजी शिक्षण संस्थान पूर्व निर्धारित शर्तों को पूरा करेंगे एवं मानदंड पर खरे उतरेंगे, तो उन्हें भी इस अभियान के तहत वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाएगी।
अल्बर्ट आइन्सटीन
जो गिनने योग्य हो, आवश्यक नहीं कि उसकी गिनती हो और यह भी जरूरी नहींकि
जिसकी गिनती होती है, वह गिनने योग्य हो ही।
- अल्बर्ट आइन्सटीन
Tuesday, 24 December 2013
राष्ट्रपति संदर्भ
राष्ट्रपति संदर्भ
एक लॉ इंटर्न के यौन उत्पीड़न के आरोपों से घिरे सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश ए. के. गांगुली को पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पद से हटाने की मांग पर सरकार ′प्रेजिडेंशियल रेफरेंस′ यानी राष्ट्रपति संदर्भ की तैयारी में है।
इसके तहत राष्ट्रपति के माध्यम से इस मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय की राय प्राप्त की जाएगी। सर्वोच्च न्यायालय की राय को पहले केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी हासिल करनी होगी और उसके बाद उसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा। फिर राष्ट्रपति के आदेश से ए के गांगुली को उनके पद से हटाने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
इससे पहले 122 टेलीकॉम लाइसेंस रद्द होने के बाद 2012 में सरकार ने प्रेजिडेंशियल रेफरेंस मांगा था। इसमें पूछा गया था कि सरकार के नीतिगत मामलों में, जिसमें प्राकृतिक संसाधनों का आवंटन भी शामिल है, न्यायालय किस हद तक दखल दे सकता है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति से राय मांगी जाती है। अनुच्छेद 143 (1) में कहा गया है कि किसी भी समय जब राष्ट्रपति के सन्मुख यह प्रकट होता है कि कोई विधि या तथ्य का प्रश्न उपस्थित हो गया है या होने की संभावना है, जो जन महत्व का है और जिसमें सर्वोच्च न्यायालय का परामर्श प्राप्त किया जाना आवश्यक है, तो वह ऐसे प्रश्न शीर्ष अदालत को विचार करने और परामर्श देने के लिए संप्रेषित कर सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय ऐसे प्रश्न पर सुनवाई करने के उपरांत, जिसे वह उचित समझता है, राष्ट्रपति को अपने परामर्श से अवगत करा सकता है। इससे पहले 2004 में केंद्र सरकार ने पंजाब और हरियाणा के बीच पानी के बंटवारे के मामले में राष्ट्रपति संदर्भ का सहारा लिया था।
Monday, 23 December 2013
सर्दियों में बीमारियों से बचने के लिए सबसे पहला कदम है डाइट।
सर्दियों में बीमारियों से बचने के लिए सबसे पहला कदम है डाइट।
यदि डाइट संतुलित और आवश्यकतानुसार होगी तो बीमारियां दूर भागेंगी। सर्दियों की डाइट में विशेषकर ऐसे पदार्थों को शामिल करना चाहिए जिनमें विटामिन-सी भरपूर मात्रा में हो। विटामिन-सी शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मददगार होता है।
इसके लिए आप डाइट में मौसमी, संतरा, नींबू शिमला मिर्च ब्रोकोली शामिल कर सकते हैं। यदि आप इन्हें कच्चा नहीं खा सकते तो इनका जूस बनाकर सेवन करें।
सर्दियों में भी रोगमुक्त रहना है तो एक्सरसाइज से मुंह न मोड़ें। एक शोध के मुताबिक सर्दियों में नियमित व्यायाम का असर लंबे समय तक रहता है और यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बनाये रखता है। व्यायाम आपकी डाइट को भी बनाये रखता है।
व्यायाम करने से आपको भूख ज्यादा लगेगी और भूख ज्यादा लगने से आप ज्यादा खायेंगे। ज्यादा खाने से शरीर को आवश्यक पोष्ाक तत्व मिलेंगे, जो संक्रमण से लड़ने में सहायक होंगे। अमेरिका में किए गए एक शोध के दौरान सामने आया कि तेज चाल से चलने वाले लोगों में बीमार होने की प्रवृत्ति में अन्य लोगों की तुलना में 40 प्रतिशत तक कमी आई।
सप्ताह में पांच दिन रोजाना बीस मिनट व्यायाम करने से अन्य दिनों की तुलना में सर्दियों में लोग कम बीमार पड़ते हैं। लेकिन पानी में तैरने जैसे व्यायाम से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो सकती है और तनाव बढ़ाने वाले हार्मोन कोर्टिसोल का स्तर भी बढ़ सकता है।
सर्दियों में आप आराम करने के बजाय यदि सोशल एक्टिविटी में बिजी रहें तो यह आपके स्वास्थ्य के लिए ज्यादा अच्छा है। यह आपका तनाव तो कम करता ही है साथ ही आपके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बनाये रखता है। यदि आप सर्दियों में रजाई के लोभ में पड़ गए तो यह सेहत पर बुरा असर डाल सकता है। सर्दियों में आराम को तवज्जो देने के बजाय काम करते रहें, दोस्तों को रात के खाने पर बुलाएं, घूमें, फिल्म देखने जा सकते हैं या फिर पार्क में भी टहल सकते हैं।
अमेरिका के मेयो क्लीनिक के एक शोध के अनुसार सर्दियों में ज्यादा बैक्टीरिया और वायरस हाथों के माध्यम से ही शरीर के अंदर पहुंचते हैं। बीमारियों को फैलने से रोकने का सबसे अच्छा उपाय है कि छींकने या खांसने के बाद हाथों को एंटीबैक्टीरियल साबुन से अच्छी तरफ साफ करें। खाना खाने से पहले और बाद में अच्छे तरीके से हाथ धोना न भूलें।
अच्छी नींद की कमी आपके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर असर डालती है। रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने से आप आसानी से सर्दियों में होने वाली बीमारियों की चपेट में आ सकते हैं।
ब्राजील में हुए एक अध्ययन में पाया गया कि कम नींद लेने से हमारे शरीर में सफेद रक्त कोशिकाएं कम हो जाती हैं और शरीर संक्रमण से लड़ने में कमजोर होता है। आप अपना रोजाना का सोने का समय निर्धारित करें। हल्का संगीत सुनंे, सोने से पहले गर्म पानी से स्नान करें, रात में सोने से पहले कम्प्यूटर का प्रयोग बिल्कुल न करें, क्योंकि यह दिमाग में मेलाटोनिन का स्तर बढ़ा देता है।
नैनीगेट
नैनीगेट
भारतीय राजनयिक देवयानी खोबरागड़े मामले को मीडिया के कुछ हिस्सों में नैनीगेट कहा जा रहा है। नैनीगेट शब्द का प्रचलन जनवरी, 1993 में तब हुआ था, जब अमेरिका के अटर्नी जनरल पद के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के दो पसंदीदा उम्मीदवारों-जोय बेयर्ड एवं किंबा वुड के मनोनयन को वहां की संसद ने राजनीतिक समर्थन देने से मना कर दिया था। इसकी मुख्य वजह यह थी कि दोनों ने अपने बच्चों की देखभाल करने के लिए अवैध रूप से विदेशी नौकरानियां (जिसे अमेरिका में नैनी कहा जाता है) रखी थीं।
पहला मामला कॉरपोरेट वकील जोय बेयर्ड से संबंधित था, जिन्होंने अपने बच्चे की देखभाल के लिए पेरु से अवैध तौर पर नौकरानी को रखा था और उसे उचित वेतन भी नहीं दे रही थीं। क्लिंटन प्रशासन ने शुरू में इसे महत्वहीन समझा, लेकिन जैसे ही मीडिया में यह खबर आई, जोय बेयर्ड के खिलाफ जनभावना भड़क उठी। आठ दिनों के भीतर क्लिंटन प्रशासन को बेयर्ड का मनोनयन वापस लेना पड़ा। अगले महीने इसी पद के लिए क्लिंटन किंबा वुड को अपनी अगली पसंद के रूप में मनोनीत करने वाले थे, तभी मीडिया रिपोर्टों से पता चला कि उन्होंने भी बच्चों की देखभाल के लिए एक विदेशी महिला को नौकरी पर रखा है।
नैनीगेट शब्द का इस्तेमाल सबसे पहले अमेरिकी पत्रकार अन्ना क्विंडलेन ने किया। उसके बाद तो दुनिया भर में इस शब्द का प्रयोग होने लगा। इस घटना ने समृद्ध परिवारों के गुप्त धन और घरेलू नौकर बनाने के लिए बड़े पैमाने पर होने वाले अवैध अप्रवासन का भंडाफोड़ किया। नैनीगेट जैसे विवाद उसके बाद भी राजनीतिक नियुक्तियों को प्रभावित करते रहे हैं।
अरविंद केजरीवाल: एक इंजीनियर से लेकर मुख्यमंत्री तक का सफर
अरविंद केजरीवाल: एक इंजीनियर से लेकर मुख्यमंत्री तक का सफर
पैंट के साथ बाहर करके पहनी गई आधी बाजू की ढीली ढाली शर्ट, काली मूंछों वाला एक नाटे कद का साधारण सा दिखने वाला आदमी। जो कभी ट्रेन का इंतजार करता प्लेटफॉर्म पर जमीन पर सोते नजर आता, तो कभी ऑटो के लिए सड़क पर इंतजार करता।
हरियाणा के भिवानी जिले के सीवानी मंडी में 16 अगस्त 1968 को गोविंद राम केजरीवाल और गीता देवी के घर जन्माष्टमी के दिन अरविंद का जन्म हुआ और इसीलिए घरवाले प्यार से उन्हें किशन भी बुलाते हैं।
हिसार से ही अरविंद ने अपनी हाईस्कूल तक की पढ़ाई पूरी की। देश के नामी गिरामी भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग करने के बाद केजरीवाल ने कुछ समय टाटा स्टील में नौकरी की। वह वर्ष 1989 में टाटा स्टील से जुड़े और वर्ष 1992 में कंपनी को अलविदा कह दिया। उन्होंने कुछ समय कोलकाता के रामकृष्णन आश्रम और नेहरू युवा केन्द्र में बिताया।
यूपीएससी में इंटरव्यू देने से पहले अरविंद केजरीवाल कोलकाता गए थे। कोलकाता में उनकी मुलाकात मदर टेरेसा से हुई। अरविंद ने कालीघाट पर काम किया और शायद यहीं से उन्हें दूसरों के लिए जीने का नजरिया मिला। 1995 में अरविंद इंडियन रेवेन्यू सर्विस के लिये चुने गये थे।
ट्रेनिंग के बाद दिल्ली में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में अस्सिटेंट कमिश्नर बने। लेकिन यहां भी अपने लिये उन्होंने खुद नियम बनाये। वो नियम थे, अपनी टेबल को खुद साफ करना, डस्टबिन की गंदगी को खुद हटाना, किसी काम के लिये चपरासी का इस्तेमाल नहीं करना। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में नौकरी करते हुये ही केजरीवाल ने डिपार्टमेंट में भ्रष्टाचार कम करने की मुहिम शुरु कर दी थी। आईआरएस सेवा के प्रशिक्षण के दौरान ही केजरीवाल ने अपनी बैचमेट सुनीता से विवाह किया। केजरीवाल के एक पुत्र और एक पुत्री है।
साल 2000 में केजरीवाल ने परिवर्तन नाम के एक एनजीओ की शुरुआत की। बैनर पोस्टर छपवाये। जिन पर लिखा था रिश्वत मत दीजिये, काम न हो तो हमसे संपर्क कीजिये। परिवर्तन के जरिए उन्होंने देश भर में सूचना के अधिकार का अभियान चलाया। बिल बेशक केंद्र सरकार ने पारित किया हो, लेकिन जनता के बीच जाकर उन्हें जागृत करने का जिम्मा अरविंद और उनके परिवर्तन ने उठाया।
अरविंद को 'राइट टू इन्फॉरमेशन' पर काम के लिये एशिया का नोबल पुरस्कार कहा जाने वाला मैग्सेसे अवार्ड मिला। परिवर्तन की लड़ाई का ही अगला चरण था जनलोकपाल। यह सिलसिला बढ़ता गया और केजरीवाल ने फरवरी 2006 में नौकरी से इस्तीफा दे दिया और पूरे समय के लिए सिर्फ परिवर्तन में ही काम करने लगे।
इसके बाद देश में शुरू हुआ भ्रष्टाचार के खिलाफ सबसे बड़ा आंदोलन। आंदोलन को जनसमर्थन तो पूरा मिला, लेकिन जनलोकपाल बिल नहीं बन पाया। केजरीवाल ने राजनीति में आने का फैसला किया। यहीं से अन्ना हजारे और केजरीवाल के रास्ते अलग हो गए, लेकिन केजरीवाल अन्ना के बिना भी आगे बढ़ते गए।
26 नवंबर 2012 में केजरीवाल की आम आदमी पार्टी अस्तित्व में आई। महज एक साल पहले पैदा हुई आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में काबिज कांग्रेस और बीजेपी को कड़ी टक्कर दी। केजरीवाल ने मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ चुनाव लड़ने की घोषणा करके सबको चौंका दिया। राजनीतिक पंडित उनके इस फैसले को लेकर अचंभित हो गए।
ऐसी चर्चा होने लगी कि केजरीवाल ने अपना राजनीतिक सफर शुरू होने से पहले ही खत्म कर लिया, लेकिन दिसम्बर में हुए विधानसभा चुनाव में उन्होंने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। उन्होंने नई दिल्ली विधानसभा सीट से दीक्षित को 23 हजार से अधिक मतों से पराजित कया और उनकी पार्टी ने 70 सदस्यीय विधानसभा में 28 सीटें हासिल की। केजरीवाल ने 'स्वराज' नाम से एक पुस्तक भी लिखी है। यह पुस्तक 2012 में प्रकाशित हुई।
Sunday, 22 December 2013
आरटीजीएस मानक के लिए बैंकों को मोहलत
आरटीजीएस मानक के लिए बैंकों को मोहलत
मुंबई। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बैंकों को आरटीजीएस पेमेंट प्लेटफार्म के तहत ग्राहकों के लिए मैसेजिंग प्रणाली हेतु आईएसओ 20022 स्टैंडर्ड अपनाने के लिए 31 मार्च तक की मोहलत दे दी है।
आरबीआई ने बैंकों द्वारा आईएसओ 20022 मानकों को पूरा करने की खातिर अपनी प्रणाली को उन्नत करने के लिए रिजर्व बैंक से और समय मांगा था। बैंकों के इस आग्रह पर विचार करते हुए रिजर्व बैंक ने उन्हें इसके लिए 31 मार्च 2014 तक का समय दिया है।
रिजर्व बैंक ने अक्तूबर में बैंकों को लिए मैसेजिंग आरटीजीएस सिस्टम को अपनाना अनिवार्य कर दिया था। साथ ही बैंकों से इसके लिए आईएसओ 20022 स्तर की प्रणाली अपनाने को कहा गया था। इसका उद्देश्य देश के बैंकिंग सेक्टर में अंतरराष्ट्रीय स्तर की मैसेजिंग प्रणाली को लागू करना था।
आरटीजीएस सिस्टम के तहत किसी बैंक शाखा द्वारा फंड ट्रांसफर किए जाने के साथ ही फंड प्राप्त करने वाली के खाते में राशि आ जाती है। इसके तहत फंड ट्रांसफर मैसेज मिलने के दो घंटे के भीतर बैंकों को फंड ट्रांसफर करना होता है।
आरटीजीएस के तहत फंड ट्रांसफर की न्यूनतम सीमा 2 लाख रुपये है, जबकि कोई ऊपरी सीमा इसपर लागू नहीं हैं। ज्यादातर बैंक अभी इसे लागू नहीं कर पाए हैं और आरटीजीएस प्रणाली के लिए अपने आईटी सेवा प्रदाताओं के अस्थायी समाधानों पर ही निर्भर हैं।
मैंग्रेवा द्वीप
मैंग्रेवा द्वीप
प्रशांत महासागर के बीच स्थित फ्रेंच पोलिनेशिया के गैंबियर द्वीप समूह का एक छोटा-सा द्वीप मैंग्रेवा इन दिनों गणितज्ञों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है।
इसकी खास वजह यह है कि एंड्रिया बेंडर एवं शीगर्ड बेलर जैसे मानवविज्ञानियों ने प्रोसिडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में पेश रिपोर्ट में बताया है कि जर्मन गणितज्ञ गोटफ्राइड लीबनीज द्वारा युग्म गणना प्रणाली (बाइनरी सिस्टम) की खोज करने से पहले ही मैंग्रेवा द्वीप के लोगों द्वारा इस प्रणाली का प्रयोग किया जाता था।
गणना की मुख्यतः दो प्रणाली प्रचलित हैं, युग्म प्रणाली एवं दशमलव प्रणाली। युग्म प्रणाली में आधार अंक एक एवं शून्य होते हैं, जबकि दशमलव प्रणाली में आधार अंक दस होता है। आम लोग जहां दशमलव प्रणाली का प्रयोग करते हैं, वहीं कंप्यूटर द्वारा युग्म प्रणाली का प्रयोग किया जाता है।
फ्रांसीसी मिशनरियों के इस द्वीप पर पहुंचने से पहले मैंग्रेवा के लोग इन दोनों प्रणालियों का उपयोग करते थे। इस द्वीप की सामाजिक संरचना वर्गीकृत थी, जिसमें राजा सबसे बड़ा माना जाता था। सामाजिक रस्म के तौर पर राजा को वहां की जनता कछुआ, नारियल, मछली आदि उपहार में देती थी, जिन्हें राजा पुनः लोगों में बांट देता था।
इस लेन-देन में गिनती के लिए युग्म प्रणाली का प्रयोग आसान था। 2007 में इस द्वीप की आबादी 1,641 थी। एक समय यह जंगलों से आच्छादित था। यहां पहुंचने वाला पहला यूरोपीय ब्रिटिश कैप्टन जेम्स विल्सन था, जो 1797 में यहां पहुंचा था।
उसी ने अपने जहाज के निर्माण में मदद करने वाले एडमिरल जेम्स गैंबियर के सम्मान में इस द्वीप समूह का नाम गैंबियर रखा। 1881 में फ्रांस का उपनिवेश बनने से पहले तक कई राजाओं ने इस द्वीप पर शासन किया।
Saturday, 21 December 2013
दुनिया रंग रंगीली
सूर्य के बड़े दिखने का रहस्य
दुनिया रंग रंगीली
अकसर हम यह देखते हैं कि सूर्योदय और सूर्यास्त के समय हमें सूर्य बड़ा दिखता है, लेकिन क्या कभी आपने यह सोचा है कि सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य बड़ा क्यों दिखता है?
अकसर हम यह देखते हैं कि सूर्योदय और सूर्यास्त के समय हमें सूर्य बड़ा दिखता है, लेकिन क्या कभी आपने यह सोचा है कि सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य बड़ा क्यों दिखता है?
उस वक्त उसकी किरणें हल्की होती हैं। ऐसे में वह हमें पूर्ण रूप में दिखता है, लेकिन जब वह पूरी तरह उदित हो जाता है तो उसकी किरणों की रोशनी बहुत तेज हो जाती है। सूर्य हमारी पृथ्वी से 15 करोड़ किलोमीटर दूर है।
यह मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम से बना है। सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी तक आने में 8 मिनट 19 सेकेंड का समय लगता है।
शाम के समय प्रकाश के हल्के और कमजोर होने से सूर्य हमें स्पष्ट और पूरा दिखाई देता है परंतु जब सूर्य दोपहर के समय ठीक पृथ्वी के ऊपर होता है,उस समय उसकी तेज किरणें पृथ्वी की ओर आती हैं। उन तेज किरणों के असर से हमें सूर्य का बाहरी हिस्सा न दिखकर सिर्फ अंदर का ही भाग नजर आता है।
पक्षियों का रोचक संसार
-उत्तरप्रदेश में पाया जाना वाला हरियल नाम का पक्षी कभी जमीन पर पैर नहीं रखता।
-डक हाक विश्व का सबसे तेज उडऩे वाला पक्षी है। यह 180 मील प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ता है।
-विश्व का सबसे छोटा पक्षी हमिंग बर्ड है।
-विश्व का सबसे बातूनी पक्षी प्रडूल है। यह भूरे रंग का नर होता है और अफ्रीका में पाया जाता है।
-सहदूल या उकाब पक्षी विश्व का सबसे विशाल पक्षी है। यह हाथी जैसे विशाल जानवर को भी पंजे में दबाकर उड़ जाता है। यह रूस में पाया जाता है।
-पिट्टा चिडिय़ा के पंख 9 रंग के होते हैं और यह ऑस्ट्रेलिया में पायी जाती है।
-बिटर्न पक्षी की आवाज बाघ की तरह होती है और यह दक्षिण अमेरिका में पाया जाता है।
-ऑस्ट्रेलिया में काले रंग के हंस पाये जाते हैं।
इसलिए लिए टिमटिमाते है तारें
तारे निरंतर एक समान चमकते रहते हैं। दरअसल तारों से छूटती रोशनी को हमारी आंखों तक पहुंचने से पहले वायुमंडल में विद्यमान अवरोधों का सामना करना पड़ता है। अत: उनकी रोशनी रास्ते में विचलित होती रहती है,
तारे निरंतर एक समान चमकते रहते हैं। दरअसल तारों से छूटती रोशनी को हमारी आंखों तक पहुंचने से पहले वायुमंडल में विद्यमान अवरोधों का सामना करना पड़ता है। अत: उनकी रोशनी रास्ते में विचलित होती रहती है,
सीधी हम तक नहीं पहुंच पाती क्योंकि वायुमंडल में हवा की कई चलायमान परतें होती हैं। यह परतें तारों की रोशनी के पथ को बदलती रहती हैं।
इसके फलस्वरूप उनकी रोशनी हमारी नजरों से कभी ओझल, कभी प्रकट होती रहती है। इसीलिए तारे टिमटिमाते दिखाई देते हैं।
उल्लू एक रात्रिचारी पक्षी है। वह अपनी आंख और गोल चेहरे के कारण बहुत प्रसिद्ध है। ये बहुत कम रोशनी में भी देख लेते हैं।
इसलिए इन्हें रात्रि में शिकार करने में ज्यादा परेशानी नहीं होती। अकसर हम यह जानते हैं कि उल्लू दिन में देख नहीं सकता, लेकिन यह बात झूठ है।
इसके ठीक विपरीत उल्लू के नेत्रों में प्रचंड रोशनी भरी पड़ी है, इसलिए वह केवल रात में ही देख पाता है।
Friday, 20 December 2013
Wednesday, 18 December 2013
प्रवर समिति
प्रवर समिति
लोकपाल एवं लोकायुक्त विधेयक, 2011 संसद के दोनों सदनों में पारित हो गया है, लेकिन राज्यसभा में पारित होने से पहले इसे प्रवर समिति के पास भेजा गया था। राज्यसभा की प्रवर समिति ने करीब एक साल बाद नवंबर, 2012 में अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी और इस विधेयक में पंद्रह संशोधन सुझाए थे। उन तमाम संशोधनों को सरकार ने मान लिया।
संसद को अपने कामकाज निपटाने के लिए कई तरह की समितियों का सहयोग लेना पड़ता है। ये समितियां सरकारी कामकाज पर प्रभावी नियंत्रण रखने के लिहाज से भी जरूरी होती हैं। मुख्यतः दो तरह की संसदीय समितियां होती हैं-तदर्थ समिति एवं स्थायी समिति। तदर्थ समितियों का गठन किसी खास उद्देश्य के लिए किया जाता है और उसका अस्तित्व तभी तक रहता है, जब तक कि वे अपना काम निपटा कर रिपोर्ट नहीं सौंप देतीं।
तदर्थ समिति मुख्यतः दो प्रकार की होती है- प्रवर समिति और संयुक्त समिति। इन दोनों समितियों का गठन विभिन्न तरह के विधेयकों पर विचार करने के लिए किया जाता है। लेकिन यह जरूरी नहीं है कि सभी विधेयकों को सदन द्वारा विचार के लिए प्रवर समिति या संयुक्त समिति को सौंपा जाए। प्रवर समिति विधेयक के सभी प्रावधानों पर बारी-बारी से विचार करती है, जैसा कि दोनों सदनों में किया जाता है। समिति के सदस्यों द्वारा विभिन्न प्रावधानों के बारे में सुझाव दिए जा सकते हैं।
समिति विधेयक में दिलचस्पी रखने वाले एसोसिएशनों, सार्वजनिक निकायों या विशेषज्ञों से भी साक्ष्य ले सकती है। विधेयक पर समग्रतापूर्वक विचार करने के बाद प्रवर समिति संशोधनों के साथ सदन को अपनी रिपोर्ट सौंप देती है। समिति के जो सदस्य किसी बिंदु पर असहमत होते हैं, वे अपनी असहमति रिपोर्ट के साथ जोड़ सकते हैं
सही समय
सही समय पर सही काम करना या कहना ही कूटनीति नहीं है, बल्कि यह गलत कृत्यों का किसी भी वक्त विरोध करने की कला भी है।
- बो बेनेट
Tuesday, 17 December 2013
बाइकल बुश वार्ब्लर
बाइकल बुश वार्ब्लर
असम के डिब्रू-साइखोवा नेशनल पार्क में एक नए पक्षी को खोजा गया है, जो देश के पक्षियों की 1,225वीं प्रजाति है। इस प्रवासी पक्षी का नाम है बाइकल बुश वार्ब्लर और इसे खोजा है तिनसुकिया कॉलेज के भूगोल के शिक्षक रंजन कुमार दास ने। बाइकल बुश वार्ब्लर एक छोटी सी चिड़िया है, जिसकी पूंछ इसी तरह की एक अन्य चिड़िया स्पॉटेड बुश वार्ब्लर से ज्यादा मजबूत है। इसके पंख हलके भूरे जैतूनी रंग के होते हैं और गर्दन भूरी सफेद रंग की होती है। इसका धड़ भूरे रंग का होता है।
इसका जीव वैज्ञानिक नाम लोकुस्टेला डाविडी है। बाइकल बुश वार्ब्लर पक्षी दक्षिणी साइबेरिया, मंगोलिया, चीन के उत्तर-पूर्वी इलाके एवं उत्तरी एवं दक्षिण पूर्वी एशिया में जाड़े के महीनों में प्रजनन करता है। यह पक्षी घनी झाड़ियों में पाया जाता है। इस प्रजाति के पक्षी की एक बड़ी आबादी मौजूद है, इसलिए इसे संवेदनशील या लुप्तप्राय प्रजाति की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है।
हालांकि इस प्रजाति के पक्षियों की कोई गणना नहीं की गई है, लेकिन इसकी आबादी सामान्य तौर पर स्थिर मानी जाती है। दस वर्षों या तीन पीढ़ियों के दौरान इसकी आबादी में दस फीसदी गिरावट का अनुमान है। यह लंबी दूरी का प्रवासी पक्षी है, जिसके प्रजनन का क्षेत्र भी काफी लंबा है।
उल्लेखनीय है कि दुनिया भर में पक्षियों की करीब नौ हजार प्रजातियां हैं, जिनमें से अब 1,225 प्रजातियां भारत में उपलब्ध हैं। यह खोज इस मायने में भी उल्लेखनीय है कि अब तक किसी भी भारतीय सूची में इस पक्षी का नाम नहीं था। डिब्रू-साइखोवा नेशनल पार्क, जहां इस पक्षी को देखा गया, वह पूर्वी हिमालयी क्षेत्र में जैव विविधता का प्रमुख केंद्र है। यहां पांच सौ से ज्यादा पक्षियों की प्रजातियां उपलब्ध हैं।
चाहे सबसे अच्छा
चाहे सबसे अच्छा हो, अथवा सबसे खराब, सिर्फ और सिर्फ समय ही है, जो हमारे पास होता है।
- आर्ट बकवाल्ड
Monday, 16 December 2013
vitamins benifits
विटामिन-डी
लाभ
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यह हड्डियों को मजबूत बनाता है।
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कैंसर और अवसाद के खतरे को रोकता है।
n
यह महिलाओं में पीएमएस के लक्षणों को कम करने में सहायक होता है।
n
हड्डी रोगों को रोकने में लाभकारी होता है।
स्रोत
मछली, दूध, अंडे, सूरज का प्रकाश
विटामिन-ए
लाभ
n
यह विटामिन हड्डियों और कोशिकाओं के निर्माण में सहायक होता है।
n
आंखों की रोशनी बढ़ाने में मदद करता है।
n
बढ़ती उम्र के प्रभाव को कम करता है।
n
रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाता है।
स्रोत
पालक, अंडे, दूध, पपीता, लाल मिर्च, आडू, अनाज
विटामिन-ई
लाभ
n
विटामिन-ई से भरपूर भोजन स्वस्थ त्वचा और बालों के लिए लाभकारी होता है।
n
यह बढ़ती उम्र में महिलाओं के शरीर में कोशिकाओं की मरम्मत करने और नई कोशिकाएं बनाने में सहायक होता है।
n
हृदय रोगों के खतरे को कम करने में मदद करता है।
n
मोतियाबिंद की रोकथाम में सहायक
स्रोत
मक्खन, मकई तेल, बादाम, पालक
विटामिन-सी
लाभ
n
शरीर में कोशिकाओं के विकास को बढ़ावा देता है।
n
कैंसर के खतरे को कम करने में बेहद मददगार होता है।
n
हृदय रोगों के खतरे को कम कर देता है।
n
ब्लड सेल बनाने में महत्वपूर्ण होता भूमिका निभाता है।
स्रोत
अंगूर, काली मिर्च, संतरे, टमाटर
स्ट्रॉबेरीज
विटामिन-बी6
लाभ
n
यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
n
अवसाद की स्थिति में राहत दिलाने में भी अहम है।
n
याददाश्त को बढ़ाता है ।
n
हार्मोन उत्पादन में मदद करता है।
n
गर्भवती महिलाएं, जिन्हें एनीमिया हो जाता है उनके लिए यह विटामिन अति आवश्यक है।
स्रोत
मीट, केले, बीन्स, दलिया, बीज, साबुत अनाज, मछली
विटामिन-के
लाभ
n
यह हृदय रोग के जोखिम को कम करने में मदद करता है
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हड्डियों को मजबूत बनाता है।
n
शरीर में रक्त के थक्के जमने की प्रकिया को बनाए रखता है।
n
रोग प्रतिरोधक क्ष्ामता को मजबूत करता है साथ ही यह शरीर को ऊर्जा भी प्रदान करता है।
स्रोत
हरी पत्तेदार सब्जियां, सोयाबीन का तेल, मछली का तेल, साबुत अनाज
विटामिन बी-7
लाभ
n
यह ग्लूकोज और फैटी एसिड के निर्माण में मदद करता है।
n
यह बाल, त्वचा और पसीने की ग्रंथियों को स्वस्थ रखता है
n
कोलेस्ट्रॉल के स्तर को सामान्य रखता है। हड्डियों के विकास के लिए आवश्यक है।
n
अवसाद और एनीमिया जैसी समस्याओं को दूर रखता है।
स्रोत
अंडा, सोयाबीन, दलिया, पनीर, दूध, दही, ब्राउन चावल, पीला फल, आलू
विटामिन-बी9
लाभ
n
यह दिल की बीमारियों को रोकने में मदद करता है
n
हाई ब्लड प्रेशर को कम कर देता है।
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मेमोरी लॉस और कैंसर की रोकथाम में भी सहायक होता है।
n
भ्रूण विकास और प्रजनन क्षमता को बढ़ाने में सहायक होता है।
स्रोत
अंडे, काली हरी पत्तेदार सब्जियां, खरबूजे स्ट्रॉबेरीज, फलिया, संतरे
विटामिन-बी 3
लाभ
n
यह महिलाओं को बढ़ती उम्र में युवा दिखने में मदद करता है।
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महिलाओं में बढ़ती उम्र में त्वचा को तरोताजा बनाये रखने में मदद करता है।
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विभिन्न प्रकार के हानिकारक बैक्टीरिया, वायरस की रोकथाम में मदद करता है।
n
यह रक्त में ट्राइग्लिसराइड्स या वसा को कम करता है।
स्रोत
मशरूम, सब्जियां, अनाज, दालें और मांस
विटामिन-बी 12
लाभ
n
यह शरीर में मैटाबोलिज्म की प्रकिया को बढ़ावा देता है।
n
याददाश्त को कमजोर होने से रोकता है।
n
शरीर के तंत्र और दिमाग को दुरूस्त रखता है।
n
यह शरीर के सभी हिस्सों के लिए अलग-अलग तरह के प्रोटीन बनाने का भी काम करता है।
स्रोत
पनीर, मछली, अंडे, मांस, दही, दूध
सोने से पहले ये मत खाना!
सोने से पहले ये मत खाना!
रात का खाना हमारी नींद और सेहत दोनों को प्रभावित करता है। इसलिए रात में सोने से पहले कुछ चीजों से परहेज करें तो अच्छा है!
पास्ता और पिज्जाः
पास्ता में काफी मात्रा में कार्बोहाइड्रेट होते हैं। इसे बनाने में काफी ज्यादा घी-तेल का इस्तेमाल होता है। रात में यदि आप पास्ता खाते हैं तो सोने के बाद यह सब फैट में बदलकर आपको मोटा कर सकता है। पास्ता की तरह ही पिज्जा भी एसिडिटी पैदा कर पाचनतंत्र को नुकसान पहुंचा सकता है।
मिठाइयां:
रिसर्च की मानें तो सोने से पहले मिठाई खाने से शरीर में वसा की मात्रा बढ़ती है। यह दिमाग की तरंगों पर भी प्रभाव डालती है, जिससे सोते समय बुरे सपने आने की आशंका बढ़ जाती है।
मांस-मछली:
बिना चर्बी वाला मीट भी डिनर में नहीं लेना चाहिए। यह बेशक प्रोटीन और आयरन का भंडार है, लेकिन यदि आप इसे डिनर में शामिल करते हैं तो आरामदायक नींद नहीं ले पायेंगे।
डार्क चॉकलेट:
विशेषज्ञ चॉकलेट को मस्तिष्क और याददाश्त के लिए फायदेमंद मानते हैं, लेकिन यह एक हाई-कैलोरी फूड है। इसमें मौजूद कैफीन और अन्य उत्तेजक पदार्थ नींद को प्रभावित कर सकते हैं।
कुछ विशेष सब्जियां:
प्याज, गोभी, ब्रोकोली जैसी सब्जियों का सेवन करने के बाद सोने की स्थिति में पेट फूलने और नींद न आने जैसी समस्या हो सकती है।
शराब:
रात को सोने से पहले शराब का सेवन आपकी नींद को सामान्य दिनों की तुलना में काफी कम कर देता है। आप ठीक प्रकार से नींद नहीं ले पाते और बीच-बीच में बार-बार जागते हैं।
हेल्थ गाइड
न्यूज डाइजेस्ट
मल्टी-ड्रग रेसिस्टेंट टीबी
मल्टी-ड्रग रेसिस्टेंट टीबी
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, दुनिया भर में करीब पांच लाख लोगों में एमडीआर (मल्टी-ड्रग रेसिस्टेंट) टीबी के नए मामले पाए गए हैं, जिनमें से ज्यादातर मामले चीन, भारत एवं रूस के हैं। टीबी के लिए सर्वाधिक प्रभावकारी दवाओं के खिलाफ यदि प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाए, तो उसे एमडीआर टीबी कहते हैं।
सामान्य टीबी के मुकाबले यह रोग काफी जटिल होता है। इसकी मुख्य वजह एंटीबायोटिक का गलत इस्तेमाल, टीबी की दवाओं को नियमित रूप से नहीं लेना, एमडीआर टीबी से संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में रहना या टीबी का आधा-अधूरा इलाज करवाना है। यदि किसी रोगी में एमडीआर टीबी विकसित हो जाए, तो वह अपने आसपास रहने वाले लोगों में इसका संक्रमण फैला सकता है।
आम तौर पर सामान्य टीबी का इलाज छह महीने तक चलता है, लेकिन यदि किसी मरीज में एमडीआर टीबी विकसित हो जाए, तो न केवल उसका इलाज लंबा चलता है, बल्कि वह ज्यादा खर्चीला भी हो जाता है। दो साल लंबे इस इलाज में हजारों रुपये खर्च हो सकते हैं, इसलिए गरीब देशों में सामान्य लोगों को इलाज में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
सामान्य टीबी कहीं एमडीआर टीबी में परिणत न हो जाए, इसके लिए जरूरी है कि जैसे ही टीबी होने का पता चले, तुरंत जांच करवा कर डॉक्टरों से उचित इलाज करवाना चाहिए, न कि केमिस्ट से दवा खरीदकर खुद इलाज शुरू करना चाहिए। दवाओं का नियमित सेवन करना चाहिए, सेहत में सुधार के लक्षण दिखते ही इलाज बंद नहीं करना चाहिए, बल्कि पूरा इलाज करवाना चाहिए। एमडीआर टीबी से संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने पर संक्रमण से बचने के लिए मास्क का प्रयोग करना चाहिए।
Sunday, 15 December 2013
काव्य फिल्मोत्सव
काव्य फिल्मोत्सव
बीते दिनों नई दिल्ली में चौथा साधो काव्य फिल्मोत्सव मनाया गया। इसमें पांच महादेशों की बीस से ज्यादा काव्य-फिल्में दिखाई गईं। काव्य-फिल्में फिल्म की एक ऐसी विधा है, जिसमें काव्य ध्वनियों एवं छवियों के संयोजन से कविताओं की दमदार प्रस्तुति की जाती है।
इस विधा की फिल्मों की शुरुआत 1920 के दशक में कुछ फ्रेंच विचारकों ने की थी। 1960 के मध्य और 1970 के दशक के शुरुआती दौर में बीट पीढ़ी के कवियों ने इसे आगे बढ़ाया और कैलिफोर्निया के सैन फ्रांसिस्को स्थित फोर्ट मैसन सेंटर में काव्य फिल्मों का वार्षिकोत्सव मनाया जाने लगा। कुछ मिनटों की इन फिल्मों का निर्माण गैर व्यावसायिक प्रोडक्शन हाउस द्वारा किया जाता है, लेकिन व्यावसायिक स्तर पर भी कुछ काव्य फिल्में बनाने के प्रयास हुए हैं।
कुछ काव्य फिल्मों का इस्तेमाल साहित्य की कक्षाओं में संकेत, उपमा और रूपक जैसी अवधारणों को समझाने के लिए भी किया गया है। टेनेसी स्टेट यूनिवर्सिटी के संचार विभाग की सहायता से इसी तरह एक पोयट्री वीडियो तैयार की गई थी, पर उसे व्यावसायिक रूप से जारी नहीं किया गया। वर्ष 1968 में प्रसारित एक काव्य फिल्म काफी प्रसिद्ध हुई, जिसे लॉरेंस फर्लिंगेटी ने बनाया था।
नाम था-एसैसिनेशन रागा (हत्या राग)। यह फिल्म कैनेडी की हत्या पर आधारित काव्य पंक्तियों, मृत्यु के दृश्यों और सितार के धीमे संगीत के संयोजन से तैयार की गई थी। हमारे देश में काव्य फिल्म बनाने की शुरुआत 21वीं सदी में हुई है।
कुछ पारंपरिक टेलीविजन पेशेवरों ने इस कला के साथ प्रयोग किए हैं। 2007 से साधो नामक स्वयंसेवी संगठन ने काव्य फिल्मों के लिए एक मंच उपलब्ध कराया। यह संगठन तब से हर दूसरे वर्ष एक अंतरराष्ट्रीय काव्य फिल्मोत्सव का आयोजन करता है।
बीते दिनों नई दिल्ली में चौथा साधो काव्य फिल्मोत्सव मनाया गया। इसमें पांच महादेशों की बीस से ज्यादा काव्य-फिल्में दिखाई गईं। काव्य-फिल्में फिल्म की एक ऐसी विधा है, जिसमें काव्य ध्वनियों एवं छवियों के संयोजन से कविताओं की दमदार प्रस्तुति की जाती है।
इस विधा की फिल्मों की शुरुआत 1920 के दशक में कुछ फ्रेंच विचारकों ने की थी। 1960 के मध्य और 1970 के दशक के शुरुआती दौर में बीट पीढ़ी के कवियों ने इसे आगे बढ़ाया और कैलिफोर्निया के सैन फ्रांसिस्को स्थित फोर्ट मैसन सेंटर में काव्य फिल्मों का वार्षिकोत्सव मनाया जाने लगा। कुछ मिनटों की इन फिल्मों का निर्माण गैर व्यावसायिक प्रोडक्शन हाउस द्वारा किया जाता है, लेकिन व्यावसायिक स्तर पर भी कुछ काव्य फिल्में बनाने के प्रयास हुए हैं।
कुछ काव्य फिल्मों का इस्तेमाल साहित्य की कक्षाओं में संकेत, उपमा और रूपक जैसी अवधारणों को समझाने के लिए भी किया गया है। टेनेसी स्टेट यूनिवर्सिटी के संचार विभाग की सहायता से इसी तरह एक पोयट्री वीडियो तैयार की गई थी, पर उसे व्यावसायिक रूप से जारी नहीं किया गया। वर्ष 1968 में प्रसारित एक काव्य फिल्म काफी प्रसिद्ध हुई, जिसे लॉरेंस फर्लिंगेटी ने बनाया था।
नाम था-एसैसिनेशन रागा (हत्या राग)। यह फिल्म कैनेडी की हत्या पर आधारित काव्य पंक्तियों, मृत्यु के दृश्यों और सितार के धीमे संगीत के संयोजन से तैयार की गई थी। हमारे देश में काव्य फिल्म बनाने की शुरुआत 21वीं सदी में हुई है।
कुछ पारंपरिक टेलीविजन पेशेवरों ने इस कला के साथ प्रयोग किए हैं। 2007 से साधो नामक स्वयंसेवी संगठन ने काव्य फिल्मों के लिए एक मंच उपलब्ध कराया। यह संगठन तब से हर दूसरे वर्ष एक अंतरराष्ट्रीय काव्य फिल्मोत्सव का आयोजन करता है।
पीपीएफ में निवेशकों को मिलता है गारंटीड रिटर्न
पीपीएफ में निवेशकों को मिलता है गारंटीड रिटर्न
डिलिस्टिंग की तरह ही एक शब्द है रिलिस्टिंग। जब कोई कंपनी एक या अनेक कारणों से नियमों का उल्लंघन करने पर डिलिस्ट कर दी जाती है तो उसके बाद वह कंपनी फिर से उन नियमों का पालन करके एक्सचेंज में अपने शेयर फिर से लिस्ट करवा लेती है। इस प्रकार दुबारा सूचीबद्ध हुई कंपनियों के लिए रिलिस्टिंग शब्द का प्रयोग होता है। निवेशकों को इससे लाभ यह होता है कि जिस कंपनी के शेयर महज कागज के टुकड़े रह गए थे उनमें फिर से जान आ जाती है, यानी उन्हें खरीदा-बेचा जा सकता है।
मैंने पीपीएफ में निवेश कर रखा है। हाल ही में नेशनल पेंशन स्कीम (एनपीएस) के बारे में सुना है। पीपीएफ में निवेश के बाद क्या मुझे एनपीएस में निवेश करना चाहिए? यदि हां, तो इसके लिए मुझे क्या करना होगा? इसके फायदे और नुकसान भी बताएं। -अविनाश पांडेय
पीपीएफ और एनपीएस दोनों अलग-अलग तरह की वित्तीय योजनाएं हैं। दोनों योजनाओं का ढांचा और फीचर अलग हैं। दोनों के बीच सबसे बड़ा फर्क गारंटीड रिटर्न का है। पीपीएफ में जहां निवेशक को एक निश्चित रिटर्न की गारंटी दी जाती है, वहीं एनपीएस में निवेशक की रकम इक्विटी और डेट में लगाए जाने के चलते इसका रिटर्न इक्विटी और डेट मार्केट की दशाओं पर निर्भर करता है। हालांकि एनपीएस में निवेशक को पीपीएफ की तुलना में ज्यादा अच्छा रिटर्न मिलने की संभावना होती है। हालांकि इसकी गारंटी नहीं होती। इस तरह पीपीएफ में जहां पूंजी की सुरक्षा पर जोर है, एनपीएस में निवेशकों को अच्छा रिटर्न देने की कोशिश रहती है।
मैंने 2008 में एसबीआई में पीपीएफ अकाउंट खुलवाया था। इसमें 2008 में 1,000 रुपये, 2009 में 1,000 रुपये और 2010 में 10,000 रुपये जमा कराए। उसके बाद मैं इसमें पैसा नहीं जमा करा सका। क्या मुझे अभी यह पैसा वापस मिल सकता है? यदि हां, तो इसके लिए क्या प्रक्रिया अपनानी होगी और यदि नहीं, तो यह पैसा कब वापस मिलेगा? - हरेश
पीपीएफ खाता खुलवाने पर उसमें हर साल कम से कम 500 रुपये जमा कराना जरूरी है। जैसा कि आपने बताया कि आपने केवल तीन साल तक पैसा जमा किया और उसके बाद निवेश को जारी नहीं रख सके। ऐसे में आपका खाता बंद कर दिया गया होगा। आप डिफॉल्ट फीस और हर साल जमा की जाने वाली न्यूनतम रकम जमा करा कर इसे दोबारा चालू करवा सकते हैं।
पीपीएफ खाते से रकम निकासी के नियमों के मुताबिक खाता खुलवाने के छह साल पूरा होने के बाद चौथे साल तक कुल जमा रकम की 50 फीसदी राशि निकाली जा सकती है। आपने मार्च 2008 में खाता खुलवाया था। इस तरह आप मार्च 2014 के बाद रकम निकाल सकेंगे।
Thursday, 12 December 2013
विश्व खाद्य कार्यक्रम
विश्व खाद्य कार्यक्रम
विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) ने हाल ही में 2013 के लिए 169 देशों के संदर्भ में जारी अपनी रिपोर्ट में भारत के मध्याह्न भोजन (मिड डे मील) कार्यक्रम की सराहना की है। रिपोर्ट के मुताबिक, स्कूल में भोजन की उपलब्धता पर केंद्रित भारत का यह कार्यक्रम दुनिया में सबसे बड़ा है। इसके जरिये देश के 12 करोड़ से भी ज्यादा बच्चों को भोजन उपलब्ध कराया जाता है।
′स्कूल आहार की वैश्विक स्थिति, 2013′ नामक यह रिपोर्ट विश्व खाद्य कार्यक्रम के 2012 में किए गए एक सर्वेक्षण पर आधारित है।
विश्व खाद्य कार्यक्रम पूरे विश्व से भूख को समाप्त करने की मुहिम में जुटी दुनिया की सबसे बड़ी मानवतावादी एजेंसी है। यह संयुक्त राष्ट्र का अंग है। विभिन्न राष्ट्रों, वैश्विक कंपनियों और व्यक्तिगत स्तर पर दुनिया के तमाम लोगों से प्राप्त होने वाली आर्थिक सहायता के जरिये डब्ल्यूएफपी अपने दायित्वों का निवर्हन करता है। इस कार्यक्रम की शुरुआत1961 में हुई।
डब्ल्यूएफपी का लक्ष्य एक ऐसी दुनिया की स्थापना करना है. जिसमें हर पुरुष, महिला और बच्चे को सक्रिय और स्वस्थ जीवन जीने के लिए जरूरी और पोषक आहार उपलब्ध कराया जा सके। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए यह खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) और कृषिगत विकास हेतु अंतरराष्ट्रीय कोष (आईएफएडी) समेत विभिन्न देशों की सरकारों और गैर सरकारी संगठनों का सहयोग लेता है।
80 देशों के तकरीबन नौ करोड़ लोग हर वर्ष इस कार्यक्रम से लाभान्वित होते हैं। डब्ल्यूएफपी के संगठन में लगभग 13,500 लोग कार्यरत हैं, जिनमें से ज्यादातर सुदूरवर्ती क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। वर्तमान में इसकी कार्यकारी निदेशक अमेरिका की एर्थरिन कजिन हैं।
Wednesday, 11 December 2013
दुनिया ऐसे लोगों
दुनिया ऐसे लोगों से अटी पड़ी है, जो असाधारण सुख की आस में संतोष को ताक पर रख देते हैं।
- डग लारसन
उत्तरी ध्रुव
उत्तरी ध्रुव
उत्तरी ध्रुव के लिए संघर्ष का एक नया दौर शुरू हो गया है। रूस द्वारा अपनी सेना को आर्कटिक महासागर क्षेत्र में उपस्थिति बढ़ाने के निर्देश दिए जाने के बाद अब कनाडा ने भी उत्तरी ध्रुव पर दावा करने का संकेत दिया है। कनाडा ने अपने अटलांटिक महासागर सीमा को बढ़ाने की मांग को लेकर संयुक्त राष्ट्र में आवदेन भी दिया है।
अंतरराष्ट्रीय कानूनों के मुताबिक, फिलहाल उत्तरी ध्रुव और इसके आसपास के आर्कटिक महासागर क्षेत्र पर किसी भी देश का अधिकार नहीं है। आर्कटिक महासागर के आसपास के पांच देश-रूस, कनाडा, नार्वे, डेनमार्क (ग्रीनलैंड के जरिये) और अमेरिका (अलास्का के जरिये) अपनी सीमाओं के 200 नॉटिकल-मील (370 किलोमीटर) तक के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र तक सीमित हैं, और इसके आगे के क्षेत्र का प्रशासन अंतर्राष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण के पास है।
इसके अलावा, स्वीडन, फिनलैंड और आइसलैंड जैसे दूसरे देश भी ध्रुवीय क्षेत्र की प्राकृतिक संपदा का उपयोग करना चाहते हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि इस क्षेत्र में तेल के सबसे बड़े भंडार हैं और सैन्य, रणनीतिक, परिवहन एवं पर्यटन की दृष्टि से भी यह बहुत महत्वपूर्ण क्षेत्र है। उत्तरी ध्रुव पृथ्वी का सबसे सुदूर उत्तरी बिंदु है, जहां पर पृथ्वी की धुरी घूमती है।
यहां अत्यधिक ठंड पड़ती है, क्योंकि लगभग छह महीने यहां सूरज नहीं चमकता है। ध्रुव के आसपास का महासागर बहुत ठंडा है और सदैव बर्फ की मोटी चादर से ढका रहता है। उत्तरी तारा या ध्रुव तारा सदैव उत्तरी ध्रुव के आकाश पर निकलता है।
यह क्षेत्र आर्कटिक घेरा भी कहलाता है, क्योंकि वहां अर्धरात्रि के सूर्य (मिडनाइट सन) और ध्रुवीय रात (पोलर नाइट) का दृश्य भी देखने को मिलता है। यहां ध्रुवीय भालू, सील एवं कुछ पक्षी व मछली पाए जाते हैं।
Tuesday, 10 December 2013
नेल्सन मंडेला
मैं जानता हूं कि मेरी और मेरे साथियों की रिहाई के लिए देश और विदेश में बहुत सारे आंदोलन चलाए जा रहे हैं, जिससे हमें बहुत प्रेरणा मिलती है और लगता है कि लाखों लोग हमारे मित्र हैं। पत्नी और परिवार के प्रेम के बाद मुझे जिस बात से सबसे अधिक उत्साह मिलता है, वह यह कि हमें बदनाम करने के और लोगों से अलग-थलग करने के शत्रु के सब प्रयासों के बावजूद सब जगह ऐसे लोग हैं, जो हमें भूले नहीं हैं। लेकिन हम अपने शत्रु को अच्छी तरह जानते हैं- कि वे हमें शक्ति की स्थिति में नहीं, दुर्बलता की स्थिति में रिहा करना चाहेंगे और यह अवसर वे कभी नहीं छोड़ेंगे।
हमारे मित्र हमारी रिहाई पर बहुत बल दे रहे हैं, लेकिन यथार्थवादी दृष्टि से हमें यही लगता है कि यह संभव नहीं होगा। लेकिन मैं बहुत आशावादी हूं, जेल की दीवारों के भीतर से भी मुझे घने बादल और क्षितिज पर नीला आसमान दिखाई देता है-कि हमारी गणनाएं चाहे जितनी गलत क्यों न हों और अपने जीवन में और भी कितनी कठिनाइयां क्यों न सहनी पड़ें, लेकिन इसी जीवनकाल में मैं बाहर निकलकर सूरज की रोशनी में चलूंगा और जमीन पर मजबूत कदमों से चलूंगा, क्योंकि ये घटनाएं मेरे संगठन की शक्ति और देशवासियों के दृढ़ निश्चय के कारण घटित होंगी।
...
दक्षिण अफ्रीकी गणतंत्र के पहले लोकतंत्रीय ढंग से निर्वाचित राष्ट्रपति के रूप में मेरी नियुक्ति मेरे परामर्श के विपरीत की गई।
चुनाव के दिन पास आने पर तीन वरिष्ठ एएनसी नेताओं ने मुझे बताया कि उन्होंने संगठन में व्यापक रूप से परामर्श करके यह पाया है कि यदि हम चुनाव जीत जाते हैं, तो मुझे राष्ट्रपति के पद के लिए खड़ा होना चाहिए। मैंने इस प्रस्ताव के विरुद्ध कहा कि इस वर्ष मैं 76 वर्ष का हो जाऊंगा, इसलिए अच्छा यह होगा कि किसी युवा पुरुष या स्त्री को इस पद के लिए चुनें, जो जेल से बाहर रहा हो, राष्ट्र और सरकारों के अध्यक्षों से मिलता रहा हो, विश्व और प्रदेशीय संस्थाओं की मीटिंग में भाग लेता रहा हो, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों से परिचित हो और जो भविष्य में होने वाली घटनाओं का भी अनुमान लगा सके।
मैंने इन नेताओं से कहा कि मैं कोई भी पद ग्रहण किए बिना सेवा करना चाहूंगा, लेकिन इनमें से एक ने मुझे धराशायी कर दिया। उसने मुझे याद दिलाया कि मैं हमेशा संयुक्त नेतृत्व के निर्णयों का कायल रहा हूं और जब तक हम इसका पालन करेंगे, हमसे भूल नहीं होगी। उसने मुझसे सीधा सवाल किया कि अब मैं क्यों इससे पीछे हट रहा हूं। मैंने उनका प्रस्ताव स्वीकार करने का फैसला कर लिया। लेकिन यह भी स्पष्ट कर दिया कि मैं केवल एक बार ही यह पद स्वीकार करूंगा।
...
रंगभेद शासन ने व्यवस्था और कानून की धज्जियां उधेड़कर रख दी थीं।
जनता के मानवाधिकारों को एकदम खत्म कर दिया गया था, मुकदमा चलाए बिना सजा दी जाती थीं, राजनीतिक कार्यकर्ताओं को प्रताड़ना दी जाती थी और हत्याएं की जाती थीं, अपील के कोर्ट के स्वतंत्र न्यायाधीशों की शासन के खिलाफ फैसले देने के लिए खुली आलोचना की जाती थी और उनके स्थान पर समर्थकों की नियुक्तियां की जाती थीं। पुलिस, विशेष रूप से उसकी सुरक्षा शाखा, अपना अलग कानून चलाती थी। इन सब कारणों से और अपने निजी विश्वासों के कारण भी, मैंने कानून तथा न्याय के पक्ष में वातावरण उत्पन्न करने के लिए हर घटना का उपयोग किया...अब नए दक्षिण अफ्रीका में कोई भी व्यक्ति, स्वयं राष्ट्रपति भी, कानून से ऊपर नहीं है।
और अंत में, जेल से 26 अप्रैल, 1981 को विन्नी मंडेला को लिखा एक पत्र-
मैं सपने देखता रहता हूं अच्छे भी, बुरे भी। गुड फ्राइडे की शाम तुम और मैं एक पहाड़ी की चोटी पर एक कॉटेज में थे, जिसके सामने एक गहरी घाटी फैली थी और एक जंगल के किनारे विशाल नदी बह रही थी। मैंने देखा कि तुम पहाड़ी से नीचे उतर रही हो, लेकिन पहले की तरह तुम स्वस्थ नहीं हो और तुम्हारे पैर डगमगा रहे हैं। तुम्हारा सिर बराबर नीचे झुका रहता है, जैसे अपने पैरों के पास तुम किसी चीज की तलाश कर रही हो। तुमने नदी पार की, मेरा सारा प्यार लेकर और मुझे खाली-खाली छोड़कर आगे बढ़ गईं। मैं तुम्हें जंगल में निरुद्देश्य इधर-उधर घूमते देखता रहता हूं, तुम नदी के साथ-साथ चल रही हो।
तुम्हारी सुरक्षा के लिए मेरी चिंता और तुम्हारे लिए मेरी शुद्ध कामना मुझे नीचे पहाड़ी की तरफ लिए जा रही है और तुम भी नदी पार करके वापस कॉटेज की तरफ आ रही हो। खुली हवा और सुंदर वातावरण में तुमसे मिलने की संभावना मेरे मन में पुरानी यादें जगा देती हैं और मैं सोच रहा हूं कि तुम्हारा हाथ पकड़कर खूब कसकर तुम्हारा चुंबन करूंगा, लेकिन घाटी की गहरी फैली खाइयों में तुम गायब हो जाती हो, मैं निराशा में डूब जाता हूं, लेकिन जब मैं कॉटेज वापस आता हूं, तो तुम वहां खड़ी मिलती हो। अब वहां हमारे बहुत से साथी भी मौजूद हैं, जिनके कारण हमारा एकांत खत्म हो जाता है। मैं तुमसे कितनी जरूरी बातें करना चाहता था। आखिरी दृश्य में तुम एक कोने में जमीन पर चुपचाप लेटी हो और थकान, बोरियत तथा उदासी को नींद में डुबाने की कोशिश कर रही हो। मैं नीचे झुकता हूं कि तुम्हारे शरीर के खुले अंग कंबल से ढक दूं। मुझे जब कभी ऐसे सपने दिखाई देते हैं, मैं बहुत चिंतित हो उठता हूं, लेकिन तुरंत यह सोचकर कि यह तो बस सपना ही था, शांत भी हो जाता हूं।
नेल्सन मंडेला
एक महानायक का जाना
एक महानायक का जाना
नेल्सन मंडेला आखिरकार मौत से हार गए, लेकिन जिस जीवटता के साथ वह जिए, ऐसी मिसालें इतिहास में बहुत कम मिलती हैं। उन्हें रंगभेद के खिलाफ लंबे और सफल संघर्ष ही नहीं, बल्कि लोकतंत्र और मानवता के लिए किए गए उनके महान प्रयासों के कारण भी याद रखा जाएगा। तकरीबन एक दशक से भले ही वह सार्वजनिक जीवन से अलग थे, मगर उनकी उपस्थिति किसी प्रकाश पुंज की तरह थी।
इस कल्पना से ही किसी के रोंगटे खड़े हो सकते हैं कि उन्हें अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण 27 बरस जेल की एक ऐसी छोटी कोठरी में बिताने पड़े थे, जहां वह ठीक से खड़े भी नहीं हो पाते थे। इस दौरान उन्हें अनेक परिजनों को खोना पड़ा और परिवार से दूर रहना पड़ा। अपने शुरुआती वर्षों में मंडेला ने भले ही सशस्त्र संघर्ष की पैरवी की थी, मगर अंततः उन्होंने गांधीवादी रास्ता ही चुना और यही बात उन्हें भारत के करीब ले आती है। यह अलग बात है कि पश्चिमी दुनिया उनकी रिहाई से कुछ बरस बाद तक उन्हें एक आतंकवादी के तौर पर ही देखती रही! हालांकि महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका से लौटने के चार बरस बाद मंडेला पैदा हुए थे, मगर यह इत्तफाक ही है कि पिछली सदी में जब ब्रिटिश शासन के खिलाफ गांधी का संघर्ष खत्म हो रहा था,
तकरीबन उसी समय 1948 में दक्षिण अफ्रीका में रंगभेदी यूरोपीय सरकार की स्थापना के बाद मंडेला ने संघर्ष शुरू किया। यह मंडेला ही थे, जिन्होंने कहा था कि भारत ने दक्षिण अफ्रीका को जो गांधी दिया था वह बैरिस्टर था, दक्षिण अफ्रीका ने उसे महात्मा गांधी के रूप में लौटाया! मगर मानवता के पक्ष में मंडेला का खुद का योगदान कम नहीं है। उनके संघर्ष के कारण ही उस नस्लवादी सरकार को झुकना पड़ा, जिसने अश्वेतों के मताधिकार से लेकर भिन्न नस्लों के बीच विवाह तक पर बंदिश लगा रखी थी और अश्वेतों के रहने तक की अलग जगह मुकर्रर कर दी थी।
प्रिटोरिया की रंगभेदी सरकार के खिलाफ अपने मुकदमे की सुनवाई के दौरान उन्होंने कहा था, ′मेरा संघर्ष एक ऐसे लोकतांत्रिक और मुक्त समाज के लिए है, जहां सभी लोग समान अवसरों और भाईचारे के साथ रह सकें। मैं इसके लिए संघर्ष करूंगा और जरूरत पड़ी, तो इसके लिए खुद को कुर्बान करने को भी तैयार हूं।′ वास्तव में नेल्सन मंडेला हमारे समय के महानायक थे। उन्हें यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी कि तमाम विविधताओं और भिन्नताओं के बावजूद हम शांति और सह-अस्तित्व के साथ रह सकें।
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