प्रवर समिति
लोकपाल एवं लोकायुक्त विधेयक, 2011 संसद के दोनों सदनों में पारित हो गया है, लेकिन राज्यसभा में पारित होने से पहले इसे प्रवर समिति के पास भेजा गया था। राज्यसभा की प्रवर समिति ने करीब एक साल बाद नवंबर, 2012 में अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी और इस विधेयक में पंद्रह संशोधन सुझाए थे। उन तमाम संशोधनों को सरकार ने मान लिया।
संसद को अपने कामकाज निपटाने के लिए कई तरह की समितियों का सहयोग लेना पड़ता है। ये समितियां सरकारी कामकाज पर प्रभावी नियंत्रण रखने के लिहाज से भी जरूरी होती हैं। मुख्यतः दो तरह की संसदीय समितियां होती हैं-तदर्थ समिति एवं स्थायी समिति। तदर्थ समितियों का गठन किसी खास उद्देश्य के लिए किया जाता है और उसका अस्तित्व तभी तक रहता है, जब तक कि वे अपना काम निपटा कर रिपोर्ट नहीं सौंप देतीं।
तदर्थ समिति मुख्यतः दो प्रकार की होती है- प्रवर समिति और संयुक्त समिति। इन दोनों समितियों का गठन विभिन्न तरह के विधेयकों पर विचार करने के लिए किया जाता है। लेकिन यह जरूरी नहीं है कि सभी विधेयकों को सदन द्वारा विचार के लिए प्रवर समिति या संयुक्त समिति को सौंपा जाए। प्रवर समिति विधेयक के सभी प्रावधानों पर बारी-बारी से विचार करती है, जैसा कि दोनों सदनों में किया जाता है। समिति के सदस्यों द्वारा विभिन्न प्रावधानों के बारे में सुझाव दिए जा सकते हैं।
समिति विधेयक में दिलचस्पी रखने वाले एसोसिएशनों, सार्वजनिक निकायों या विशेषज्ञों से भी साक्ष्य ले सकती है। विधेयक पर समग्रतापूर्वक विचार करने के बाद प्रवर समिति संशोधनों के साथ सदन को अपनी रिपोर्ट सौंप देती है। समिति के जो सदस्य किसी बिंदु पर असहमत होते हैं, वे अपनी असहमति रिपोर्ट के साथ जोड़ सकते हैं
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