छत्रपति शिवाजी महाराज वास्तु संग्रहालय ने अनवर-ए-सुहैली की पांडुलिपि को फिर से पहले जैसा तैयार कराया है। दरअसल यह पौराणिक संस्कृत नीतिकथा पंचतंत्र का फारसी अनुवाद है, जिसे संभवतः मुगल सम्राट अकबर ने तैयार करवाया था। 15वीं शताब्दी के अंत में इसका फारसी में अनुवाद हुसैन इब्न अली वैज अल कासिफ ने किया था। माना जाता है कि सम्राट अकबर ने करीब दो सौ से ज्यादा रेखाचित्रों से सुसज्जित इस पांडुलिपि को अपने बेटे सलीम को नैतिक ज्ञान की शिक्षा देने के लिए तैयार करवाया था। 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में यह पांडुलिपि पूना के माउंटस्टुअर्ट एलफिंस्टन के पुस्तकालय में थी, जो आग लगने के कारण क्षतिग्रस्त हो गई थी। कुछ कलाप्रेमियों ने इसके पन्नों को सहेजकर एक एलबम के रूप में संरक्षित कर दिया। भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक अधिकारी सर अल्मा लतीफी ने उस एलबम को 1938 में लंदन में एक सेल में खरीदा, जिसे बाद में उनके परिजनों ने 1973 में छत्रपति शिवाजी महाराज वास्तु संग्रहालय को उपहार में दे दिया। इस पांडुलिपि का एक भी पन्ना दुरुस्त नहीं था। हालांकि इसके रेखाचित्रों की कलात्मक गुणवत्ता को देखकर मशहूर कलाकार अब्द-अल समद की देखरेख में इसके सुनियोजित उत्पादन का पता चलता है। यह पांडुलिपि जानवरों एवं पक्षियों के स्वभाव एवं चतुराई को समझने के लिहाज से मील का पत्थर मानी जाती है। अनवर-ए-सुहैली की सचित्र पांडुलिपि से भागते, एक दूसरे का पीछा करते, सभा करते जानवरों एवं पक्षियों की एक पूरी दुनिया हमारे सामने साकार हो उठती है। अनवर-ए-सुहैली का कई भाषाओं में अनुवाद किया गया। वर्षों तक इसे फारसी भाषा के छात्रों के लिए संदर्भ पाठ के रूप में पढ़ाया गया।
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