वीवीपैट
मिजोरम के विधानसभा चुनाव में इस्तेमाल की गई वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी या वीवीपैट) प्रणाली उम्मीदों पर पूरी तरह खरी नहीं उतर सकी है। वीवीपैट प्रणाली स्वच्छ और निष्पक्ष मतदान के लिए की गई नई पहल है। इसके इस्तेमाल से मतदाता जान सकते हैं कि ईवीएम में उनका वोट सही दर्ज हुआ है कि नहीं। इसमें मतदाता को वोट डालने के बाद शीशे के अंदर से एक पर्ची दिखती है, जिसमें उसका नाम, दबाए गए चुनाव चिह्न की जानकारी और उम्मीदावर का क्रमांक दर्ज होता है। इस प्रिंटआउट को मतदाता अपने घर नहीं ले जा सकते, क्योंकि कुछ सेकंडों में ही यह पर्ची ओझल होकर वीवीपैट के निचले हिस्से में लगे बॉक्स में गिर जाती है। हालांकि चुनावी नतीजों पर विवाद होने की स्थिति में इन पर्चियों की गिनती की जा सकती है। ऐसी प्रणाली का इस्तेमाल इसलिए किया जा रहा है, ताकि मतदाता को यह भ्रम न रहे कि ईवीएम की कथित गड़बड़ी से उनका वोट किसी और उम्मीदवार को जा रहा है। अपने देश में प्रति वीवीपैट-निर्माण में करीब 12,000 रुपये का खर्च आ रहा है। वीवीपैट का सर्वप्रथम इस्तेमाल नगालैंड में विगत सितंबर में हुए नोकसेन विधानसभा उपचुनाव में हुआ था। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग को यह निर्देश दिया है कि अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव में वीवीपैट योजना चरणबद्ध तरीके से लागू की जाए, लेकिन अनुमान है कि पूरे देश में इसे लागू करने के लिए 13 लाख वीवीपैट मशीनों की जरूरत होगी, जिस पर 2,000 से 3,000 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। वैसे विगत 14 अगस्त को सरकार चुनावों में वीवीपैट के इस्तेमाल के लिए चुनाव आयोजन नियम, 1961 में संशोधन कर चुकी है।
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