काव्य फिल्मोत्सव
बीते दिनों नई दिल्ली में चौथा साधो काव्य फिल्मोत्सव मनाया गया। इसमें पांच महादेशों की बीस से ज्यादा काव्य-फिल्में दिखाई गईं। काव्य-फिल्में फिल्म की एक ऐसी विधा है, जिसमें काव्य ध्वनियों एवं छवियों के संयोजन से कविताओं की दमदार प्रस्तुति की जाती है।
इस विधा की फिल्मों की शुरुआत 1920 के दशक में कुछ फ्रेंच विचारकों ने की थी। 1960 के मध्य और 1970 के दशक के शुरुआती दौर में बीट पीढ़ी के कवियों ने इसे आगे बढ़ाया और कैलिफोर्निया के सैन फ्रांसिस्को स्थित फोर्ट मैसन सेंटर में काव्य फिल्मों का वार्षिकोत्सव मनाया जाने लगा। कुछ मिनटों की इन फिल्मों का निर्माण गैर व्यावसायिक प्रोडक्शन हाउस द्वारा किया जाता है, लेकिन व्यावसायिक स्तर पर भी कुछ काव्य फिल्में बनाने के प्रयास हुए हैं।
कुछ काव्य फिल्मों का इस्तेमाल साहित्य की कक्षाओं में संकेत, उपमा और रूपक जैसी अवधारणों को समझाने के लिए भी किया गया है। टेनेसी स्टेट यूनिवर्सिटी के संचार विभाग की सहायता से इसी तरह एक पोयट्री वीडियो तैयार की गई थी, पर उसे व्यावसायिक रूप से जारी नहीं किया गया। वर्ष 1968 में प्रसारित एक काव्य फिल्म काफी प्रसिद्ध हुई, जिसे लॉरेंस फर्लिंगेटी ने बनाया था।
नाम था-एसैसिनेशन रागा (हत्या राग)। यह फिल्म कैनेडी की हत्या पर आधारित काव्य पंक्तियों, मृत्यु के दृश्यों और सितार के धीमे संगीत के संयोजन से तैयार की गई थी। हमारे देश में काव्य फिल्म बनाने की शुरुआत 21वीं सदी में हुई है।
कुछ पारंपरिक टेलीविजन पेशेवरों ने इस कला के साथ प्रयोग किए हैं। 2007 से साधो नामक स्वयंसेवी संगठन ने काव्य फिल्मों के लिए एक मंच उपलब्ध कराया। यह संगठन तब से हर दूसरे वर्ष एक अंतरराष्ट्रीय काव्य फिल्मोत्सव का आयोजन करता है।
बीते दिनों नई दिल्ली में चौथा साधो काव्य फिल्मोत्सव मनाया गया। इसमें पांच महादेशों की बीस से ज्यादा काव्य-फिल्में दिखाई गईं। काव्य-फिल्में फिल्म की एक ऐसी विधा है, जिसमें काव्य ध्वनियों एवं छवियों के संयोजन से कविताओं की दमदार प्रस्तुति की जाती है।
इस विधा की फिल्मों की शुरुआत 1920 के दशक में कुछ फ्रेंच विचारकों ने की थी। 1960 के मध्य और 1970 के दशक के शुरुआती दौर में बीट पीढ़ी के कवियों ने इसे आगे बढ़ाया और कैलिफोर्निया के सैन फ्रांसिस्को स्थित फोर्ट मैसन सेंटर में काव्य फिल्मों का वार्षिकोत्सव मनाया जाने लगा। कुछ मिनटों की इन फिल्मों का निर्माण गैर व्यावसायिक प्रोडक्शन हाउस द्वारा किया जाता है, लेकिन व्यावसायिक स्तर पर भी कुछ काव्य फिल्में बनाने के प्रयास हुए हैं।
कुछ काव्य फिल्मों का इस्तेमाल साहित्य की कक्षाओं में संकेत, उपमा और रूपक जैसी अवधारणों को समझाने के लिए भी किया गया है। टेनेसी स्टेट यूनिवर्सिटी के संचार विभाग की सहायता से इसी तरह एक पोयट्री वीडियो तैयार की गई थी, पर उसे व्यावसायिक रूप से जारी नहीं किया गया। वर्ष 1968 में प्रसारित एक काव्य फिल्म काफी प्रसिद्ध हुई, जिसे लॉरेंस फर्लिंगेटी ने बनाया था।
नाम था-एसैसिनेशन रागा (हत्या राग)। यह फिल्म कैनेडी की हत्या पर आधारित काव्य पंक्तियों, मृत्यु के दृश्यों और सितार के धीमे संगीत के संयोजन से तैयार की गई थी। हमारे देश में काव्य फिल्म बनाने की शुरुआत 21वीं सदी में हुई है।
कुछ पारंपरिक टेलीविजन पेशेवरों ने इस कला के साथ प्रयोग किए हैं। 2007 से साधो नामक स्वयंसेवी संगठन ने काव्य फिल्मों के लिए एक मंच उपलब्ध कराया। यह संगठन तब से हर दूसरे वर्ष एक अंतरराष्ट्रीय काव्य फिल्मोत्सव का आयोजन करता है।
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