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Wednesday, 4 December 2013

एसटीडी सेवा

एसटीडी सेवा

अत्याधुनिक तकनीक की दुनिया में आज हम भले ही चंद सेकंडों में लंबी दूरी के फोन कॉल कर लेते हैं, लेकिन यह सेवा महज 55 साल ही पुरानी है। वर्ष 1958 में आज के ही दिन (पांच दिसंबर) ब्रिटिश महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने बिना ऑपरेटर की सहायता से फोन कॉल कर इसकी शुरुआत की थी।

 तब वह ब्रिस्टल में थीं और उन्होंने एडिनबर्ग (स्कॉटलैंड की राजधानी) के राजा प्रोफॉस्ट को फोन किया था। उनके पहले शब्द थे, ′दिस इज द क्वीन स्पीकिंग फ्रॉम ब्रिस्टल. गुड आफ्टरनून, माई लॉर्ड प्रोफॉस्ट।′ दो मिनट चली यह बातचीत चूंकि बिना ऑपरेटर की सहायता से की गई थी, इसलिए इसे सब्सक्राइबर ट्रंक डायलिंग (एसटीडी) कहा गया।

 हालांकि एसटीडी सेवा को पूरी दुनिया में लागू होने में तकरीबन 21 वर्ष का वक्त लग गया। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि इस सेवा के लिए हर क्षेत्र का अपना एसटीडी कोड का होना आवश्यक था। उपभोक्ता द्वारा एसटीडी कोड के डायल के बाद ही बातचीत संभव थी।

 जब हर क्षेत्र को अपना एसटीडी कोड मिल गया, तो 1979 से यह सेवा आम हो गई। आज यह सेवा ब्रिटेन, आयरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, भारत, दक्षिण-पूर्व एशिया जैसी जगहों पर एसटीडी नाम से प्रचलित है, तो उत्तरी अमेरिका, कनाडा आदि राज्यों में डायरेक्ट डिस्टेंस डायलिंग के नाम से। अपने देश में एसटीडी सेवा की शुरुआत 1960 से हुई। पहली कॉल कानपुर और लखनऊ के बीच की गई। इससे ′ट्रंक कॉल′ के लिए ऑपरेटर की सहायता लेनी बंद होने लगी। इंटरनेशनल डायरेक्ट डायलिंग (आईएसडी) एसटीडी का ही विस्तार है। आठ मार्च, 1963 को लंदन के उपभोक्ताओं ने बिना ऑपरेटर के पेरिस फोन किया था, जिसे आईएसडी कॉल कहा गया।

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